पराए शहर में मां पर दो बेटियों की परवरिश का जिम्मा आ गया
काँगड़ा,रिपोर्ट नेहा धीमान
गरीब मां के अरमान बेटी ने प्रोफेसर बनकर परवान चढ़ाए। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को समर्पित यह कहानी कांगड़ा जिले के पालमपुर नगर निगम के वार्ड लोहना की रहने वाली और वर्तमान में सरदार पटेल यूनिवर्सिटी मंडी में तैनात असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. शिवान खान की है।
शिवान महज पांच माह की थी तब उसके पिता मां को छोड़ चले गए। पराए शहर में मां पर दो बेटियों की परवरिश का जिम्मा आ गया। तब पालमपुर में कुंज बिहारी लाल बुटेल ने शिवान की माता बंसीरा को लोहना गांव में रहने को छोटी सी जगह दी। वहां उनके घर को छोड़ सभी हिंदू परिवार रहते हैं।अनपढ़ होने के बावजूद बंसीरा ने हार नहीं मानी और बेटियों की पढ़ाई के लिए लोन लेकर गाय खरीदी और दूध बेचकर दोनों बच्चियों को पढ़ाया। मां बेटियों को यहीं सिखाती कि घर की गरीबी पढ़ाई से ही दूर हो सकती है। जब तीसरी कक्षा में पहुंची तो मां ने पड़ोस के स्कूल से निकालकर पालमपुर तीन किमी दूर दाखिला करवा दिया ताकि बेटी आते जाते थक सके और दुनिया को जान पाए। पांचवीं के बाद नवोदय स्कूल पपरोला में दाखिला मिल गया।
इस खुशी में स्कूल की शिक्षिका कौशल्या राणा ने तब एक हजार रुपये प्रोत्साहन के रूप में दिए। शिवान बताती हैं कि अल्पसंख्यक होने के बावजूद कभी हिंदू समुदाय के लोगों ने इसका अहसास नहीं होने दिया। रिश्तेदारों की तरह प्यार मिला। शिवान बताती हैं कि टॉपर थी तो स्कॉलरशिप मिलनी शुरू हो गई। घर की स्थिति सही न होने पर बड़ी बहन शम्मी अख्तर को ग्रेजुएशन के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। जब बीकॉम की पढ़ाई पूरी की तो लोग नौकरी करने की बात कहने लगे। तब मां ने हौसला बढ़ाया और पढ़ाई जारी रखने के लिए कहा।शिवान बताती है कि एमकॉम के आखिरी सेमेस्टर के दौरान उसे क्लर्क की नौकरी मिली। मां इससे खुश नहीं थी। कहा इतना संघर्ष कर पढ़ा रही हूं आप यह जॉब करेंगी।
इसके बाद एमफिल में दाखिला करवा दिया। खुद ट्यूशन भी पढ़ाई और अपनी पढ़ाई का खर्चा उठाया। एचपीयू शिमला में प्रो. देवेंद्र शर्मा ने प्रतिभा को पहचाना और कॅरियर संबंधी टिप्स दिए। बाद में पीएचडी की पढ़ाई पूरी करने के बाद डॉ. शिवान खान 2022 से एसपीयू मंडी में असिस्टेंट प्रोफेसर काम कर रही हैं।शिवान बताती हैं कि परिस्थितियों से लड़ना उसने मां से सीखा। मां के संघर्ष को हमेशा याद किया। पढ़ने और घूमने की आजादी रही। नीयत सही थी तो आगे रास्ते भी खुद खुलते गए। जब 2022 में नौकरी के लिए मेल आई तो मां रातभर खुशी में नहीं सो पाईं। उन्हें पीएचडी के बारे में पता नहीं है लेकिन वह कामयाबी से खुश हैं।
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