उच्चाधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से सर्वोच्च न्यायालय में होना होगा पेश
शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट
सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश के शिक्षा विभाग को याची शिक्षकों को 2014 से ही सभी वित्तीय लाभ तीन माह के भीतर प्रदान करने के आदेश जारी किए हैं।
आदेशों की अवहेलना होने पर शिक्षा विभाग के उच्चाधिकारियों को व्यक्तिगत रूप से सर्वोच्च न्यायालय में पेश होना होगा। सर्वोच्च न्यायालय में सोमवार को मस्तराम शर्मा, इंदर सिंह, धर्मपाल और अन्य की अवमानना सिविल याचिका नंबर 154/2024 बनाम राकेश कंवर शिक्षा, सचिव हिमाचल प्रदेश सरकार और डॉ. अमरजीत कुमार शर्मा, निदेशक उच्च शिक्षा हिमाचल प्रदेश सरकार के मामले की सुनवाई हुई। इसमें सर्वोच्च न्यायालय की खंडपीठ न्यायाधीश बीआर गवाई और न्यायाधीश अगस्टाइन जॉर्ज मसीह ने सुनवाई करते हुए यह आदेश जारी किया है कि हिमाचल का शिक्षा विभाग वर्ष 2017 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए आदेशों का तुरंत पालन करे और इन आदेशों को तीन माह में लागू करे।
मामले की पैरवी करते हुए अधिवक्ता शेरंग वर्मा, गौरव शर्मा और विनोद शर्मा ने बताया कि याचिकाकर्ताओं की भारतीय संविधान के अनुच्छेद 139 के तहत एसएलपी सिविल नंबर 5529/2013 जिसमें 7 जुलाई 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने आदेश दिया था कि याचिकाकर्ता जोकि रेगुलर बेसिस शिक्षक लेक्चरर स्कूल काडर को वरिष्ठता सूची में प्राथमिकता के आधार पर उन टेन्योर लेक्चरर के ऊपर वरिष्ठता दी जाए। लेकिन शिक्षा विभाग ने 17 दिसंबर 2018 को नियमित शिक्षकों के बजाय टेन्योर शिक्षकों को ही नियमित कर दिया। इसके बाद याचिकाकर्ताओं ने अवमानना याचिका नंबर 2102/2018 सर्वोच्च न्यायालय में दायर की। इसके बाद विभाग ने सर्वोच्च न्यायालय में शपथपत्र देखकर माफी मांगने के साथ-साथ अपनी गलती को सुधारने के लिए न्यायालय के आदेशों को लागू करने की बात कही। हिमाचल सरकार की ओर से अधिवक्ता वैभव श्रीवास्तव और सुगंधा आनंद ने मामले की पैरवी की। विनोद शर्मा ने बताया कि न्यायालय ने इस मामले में सरकार को तीन माह का समय दिया है।
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