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हिमाचल में बढ़ रहा नशा ही होगा युवाओं के भविष्य के दहन का कारण - अभाविप

          नशे के प्रभावी रूप से फैलने से पहले ही उठाई थी नशे के विरुद्ध आवाज – गोकुल लखनारा

काँगड़ा,रिपोर्ट नेहा धीमान 

प्रेस वार्ता को संबोधित करते हुए अभाविप हिमाचल प्रदेश एग्रीविजन के प्रदेश संयोजक गोकुल लखनारा ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में बढ़ता नशा बेहद प्रभावी रूप से अपना रूप धारण करते हुए नज़र आ रहा है । 

विद्यार्थी परिषद द्वारा नशे के हिमाचल में आने के पहले चरण में ही इसका विरोध शुरू कर दिया गया था लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा विद्यार्थी परिषद की नशे के खिलाफ कदम उठाने की मांग को हल्के में लिया गया । जिसके कारण आज हम, हिमाचल के युवा को नशे की गिरफ्त में आकर बर्बाद होते देख रहे हैं । हिमाचल प्रदेश में लगातार बढ़ती नशा तस्करी एवं युवाओं में नशाखोरी एक चिंता का विषय है ।पिछले 5 से 10 वर्षों में लगातार नशे में संलिप्तता के दर्ज किया जा रहे केसों में वृद्धि हो रही है। अगर हम 2015 से आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2015 में नशे के 622 मामले सामने आए, 2016 में 929, 2017 में 1010, 2019 में 1345, 2022 और 2023 में 2000 से अधिक मामले और 2024 में 2515 अपराधियों को पकड़ा गया है, जिसमें 2 विदेशी एवं 112 महिलाएं भी शामिल हैं। इन आंकड़ों को देख कर हमें इसका ग्राफ बढ़ता हुआ ही नज़र आ रहा है। 


13 महीने के अंतराल में ही NDPS के करीब 1943 मामले दर्ज किए गए हैं। अगर हम पुलिस द्वारा जारी किए आंकड़ों की बात करें तो 2023 में 10.18kg चिट्टा, 321kg चरस, 648.8kg पॉपी हस्क (चूरापोस्त) जैसे और भी अन्य नशीले पदार्श बरामद किए गए हैं।हिमाचल प्रदेश में कुछ सामाजिक, सरकारी और ग़ैर सरकारी संगठनों के द्वारा किए गए सर्वेक्षणों के अनुसार प्रदेश में औसतन 35-36% नशे का प्रचलन हो चुका है । यह आँकड़े सर्वे किए गए सैंपल्स में से निकल कर आये हैं। हिमाचल प्रदेश नशा निवारण बोर्ड के द्वारा 2020 के मध्य में कुल 27 नशा मुक्ति केंद्रों में किए गए (कोविड -19 के दौरान ) सर्वे के अनुसार 15-40 वर्ष की आयु सीमा में चिट्टे की लत्त के लगभग 39% मरीज, चरस भांग के 22.64%, शराब के 21.36% मरीज़ पाए गए थे। बाक़ी मरीज़ सिंथेटिक ड्रग्स जिनमें अधिकतर पेन किलर्स व अन्य नशीली दवाओं के दुरुपयोग से संबंध रखने वाले पाए गए थे ।हिमाचल प्रदेश में नशे का सबसे बड़ा कारण अकेलेपन का शिकार होना, बच्चों को अभिभावकों द्वारा अकेले छोड़ देना और संपर्क व विश्वास क़ायम न करना है । जिस कारण स्कूल और कॉलेज में बुरे दोस्तों के अधीन हो जाना और ड्रग्स की सप्लाई चेन का हिस्सा बनकर आपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाना है । दूसरा कारण यह है कि युवाओं की ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में उपयोग करने के मैकेनिज्म प्रदेश में ना होना । खेलों में रुचि न होना और मोबाइल फ़ोन की लत से शरीर और मन दोनों में शिथिलता आ जाना परिणामस्वरूप तनाव में चले जाना, अवसाद का शिकार होना और बचने के प्रयास में नशीले पदार्थो का सेवन करके पूरे परिवार को मानसिक रोगी बना देना। 

तरुणावस्था में कुछ नया प्रयोग करना और मज़ा/ आनंद लेने के चक्कर में और दोस्तों की संगति में युवा चरस से चिट्टे की तरफ आकर्षित हो कर ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहे हैं।पुलिस द्वारा नशा तस्करी के केस में लगातार अपरधियों को गिरफ्तार किया जा रहा है, परंतु इससे कई गुना ज्यादा नशा तस्करी एवं नशाखोरी के मामले दर्ज ही नहीं हो रहे हैं क्योंकि यह बीमारी बहुत गहराई तक अपने पैर पसार चुकी है। प्रदेश में नशा माफिया दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है, लेकिन प्रदेश सरकार नशा माफिया पर अंकुश लगाने में असफल होती नजर आ रही है। अब प्रदेश की स्थिति दिन-प्रतिदिन ऐसी बिगड़ती जा रही है कि लगभग हर दिन चिट्टा जैसे खतरनाक नशीले पदार्थों की घटनाओं के बारे में सुनने को मिल रहा है। नशाखोरी के विभिन्न स्वरूप जिसमें प्रमुखता से चिट्टा, अफीम, भांग का उपयोग हो रहा है।नशाखोरी के प्रमुख कारणों में युवाओं में बढ़ती बेरोजगारी, कौशल आधारित शिक्षा का अभाव, अवसाद (डिप्रैशन) ग्रस्त युवा एवं व्यवसायिक शिक्षा की गुणवत्ता में कमी होना है। जिसके लिए सरकार और प्रशासन को ध्यान देना एवं ठोस कदम उठाने चाहिए। विद्यार्थी व युवा देश का भविष्य ही नहीं बल्कि देश का वर्तमान भी हैं। यदि देश का वर्तमान ही नशा माफिया के चंगुल में फंसकर अपना भविष्य अंधकारमय कर लेगा तो देश का भविष्य भी सुरक्षित नहीं होगा। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद, नशा माफिया के पूरे गठजोड़ पर करारी चोट करते हुए उनके खिलाफ कठोरतम कार्रवाई करने की मांग करती है, ताकि देश का वर्तमान और भविष्य दोनों सुरक्षित हों। 




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