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40 साल का हजारों लोगों का इंतज़ार हुआ खत्म

                                         सूरत राम 100 मीटर लंबे आस्था के रस्से से खाई को पार करेंगे

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

आखिर वह पल आ ही गया, जिसका हजारों लोग 40 साल से इंतजार कर रहे थे। दलगांव के भूंडा महायज्ञ के दूसरे दिन शुक्रवार को सबसे पहले रास मंडल विसर्जन के बाद गांव के चारों ओर फेर (परिक्रमा) और आखिर में देवता बकरालू के ऐतिहासिक मंदिर की छत पर शिखा पूजन की रस्म पूरी की गई। 

शनिवार को बेड़े की रस्म अदा होगी। इस दौरान सूरत राम 100 मीटर लंबे आस्था के रस्से से खाई को पार करेंगे। बकरालू मंदिर के इस अनुष्ठान में इस बार हजारों लोगों की भीड़ धार्मिक समारोह की की गवाह बन रही है। पूरा दिन दलगांव देव जयकारों, ढोल-नगाड़ों की धुनों व नाटियों के साथ गूंजता रहा।बाहर से पहुंचे मेहमान देवता बौंद्रा, देवता मोहरिश और देवता महेश्वर गांव के साथ अलग-अलग टेंट में हजारों की संख्या में आए खूंदों (देवलुओं) के साथ ठहरे हैं। शुक्रवार को अनुष्ठान शुरू होने से पहले देवताओं की पूजा करीब नौ बजे सुबह शुरू हुई।


पूजा पूरी होने पर देवता बौंद्रा व महेश्वर की पालकियों के साथ खूंद नाचते-गाते मेजबान देवता बकरालू के मंदिर प्रांगण में पहुंचे। मंदिर में इस दौरान रास मंडल लिखा जा रहा था। रास मंडल वैदिक परंपरा के अनुसार विद्वान पंडितों की ओर से लिखा जाता है। इसके तैयार होने व पूजा की प्रक्रिया पूरी होने तक रास मंडल के चारों ओर कुछ चयनित लोग लगातार परिक्रमा करते रहे। मंडल लिखते समय यदि किसी ने इसको खंडित करने का प्रयास किया तो अनुष्ठान में विघ्न माना जाता है। रास मंडल की पूजा-अर्चना के बाद देवता बौंद्रा व देवता महेश्वर ने इसे सिर लगाकर खंडित किया। 


इस अनुष्ठान में परशुराम देवता खशकंडी, गुम्मा व अंद्रेवठी भी शामिल रहे।करीब साढ़े ग्यारह बजे से सवा चार बजे तक फेर की रस्म की गई। फेर में देवता मोहरिश की पालकी के साथ रंटाड़ी गांव के लोग हथियारों-डंडों से लैस होकर नाचते हुए पूरे दलगांव की परिक्रमा करके मंदिर पहुंचे। फेर की रस्म पूरी होने के बाद मंदिर की छत पर शिखा पूजन शुरू किया गया। इस दौरान मंदिर की छत पर पंडितों की ओर से मंत्रोच्चारण के साथ चार दिशाओं का पूजन किया गया। चारों दिशाओं में तीर छोड़कर अदृश्य आसुरी शक्तियों को रोकने के लिए वैदिक प्रकिया पूरी की गई। मंदिर के मोतमीन राघनाथ झामटा ने बताया कि शिखा पूजन के बाद बेड़ा का भूंडा अनुष्ठान में विशेष महत्व रहता है। उन्होंने कहा वैदिक परंपरा के तहत ही शिखा व फेर का पूजन किया जाता है।


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