अब मजदूर की बेटी वनिता कलाकृतियां बेच कमा रहीं नाम
शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट
बेटी अनमोल है। इसमें कोई दोराय नहीं है। आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद शिमला के लोअर पंथाघाटी में 24 साल की वनिता अपने बचपन के सपनों में रंग भर रही हैं।
झारखंड के आदिवासी मजदूर माता-पिता की बेटी वनिता को बचपन से कलाकृतियां बनाने का शौक है। वह बिहार की मधुबनी पेंटिंग, गुजरात, राजस्थान के लिप्पन और तिब्बत के मंडला आर्ट में माहिर हो चुकी हैं। अब महीने में कलाकृतियों से 7 से 8 हजार रुपये कमा लेती हैं। लिप्पन 850 से 1900, मंडला आर्ट की कलाकृति 350 से 1900 रुपये में बिक रही है। यही नहीं वनिता आजकल शहर को दो-तीन युवाओं को प्रशिक्षण भी दे रही हैं।लोअर पंथाघाटी में एक कारोबारी के पास घरेलू सहायिका के रूप में वनिता काम कर रही हैं।
झारखंड के गुमला जिले के गांव चुहरू के पुजार उरांव और राजकुमारी देवी कई सालों पहले काम की तलाश में शिमला आए। वनिता भी उनके साथ थीं। वनिता ने किसी तरह ब्यूलिया स्कूल से 12वीं की परीक्षा पास की। चित्रकारी का शौक था, लेकिन महंगे रंगों सहित सामग्री खरीद पाना संभव नहीं था। गरीबी के कारण पढ़ाई भी छूट गई। फिर लोगों के घर में काम करने लगीं। इसी बीच कोरोना काल में वनिता शहर के कारोबारी पंकज मल्होत्रा के घर में काम करने गईं। दरअसल, इसी परिवार ने वनिता की प्रतिभा को पहचान और प्रोत्साहन भी दिया। घरेलू काम से फुर्सत मिलने के बाद वनिता पेंटिंग बनातीं।
वनिता का कहना है कि एक मजदूर का परिवार तो सिर्फ दो वक्त की रोटी जुटाने के संघर्ष में लगा रहता है।मल्होत्रा परिवार ने मुझे अपने सपनों में रंग भरने का मौका दिया। पेंटिंग्स, लिप्पन और मंडला कलाकृतियों के अलावा कॉफी मग पर चित्रकारी कर लेती हैं। लोअर पंथाघाटी में एचएफआरआई के पास सड़क के किनारे पंकज मल्होत्रा के घर के बाहर शाम को 2 घंटे वह अपनी कलाकृतियां सजाती हैं। वहां से आते जाते लोग उसकी कलाकृतियां खरीद लेते हैं। कुछ ऑर्डर इंस्टाग्राम और सोशल मीडिया के माध्यम से भी मिल जाते हैं। भविष्य में वह शिमला में अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाना चाहती हैं और ई-कॉमर्स के जरिये भी देश-विदेश में बिक्री के बारे में सोचा है। इधर, उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो अजय श्रीवास्तव का कहना है कि उनकी संस्था वनिता को शिमला में अपनी कलाकृतियों की प्रदर्शनी लगाने में सहयोग करेगी।
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