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स्वस्थ मिट्टी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में कारगर

                                                               सीपीआरआई वैज्ञानिकों ने किया खुलासा

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

स्वस्थ मिट्टी जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से निपटने में कारगर है, क्योंकि मिट्टी प्राकृतिक रूप से कार्बन की बड़ी मात्रा को पृथक्करण एवं भंडारण करती है।

मिट्टी की सेहत अच्छी रहेगी तो फसलों का उत्पादन भी बढ़ेगा और जल सरंक्षण भी होगा। यूएन सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल में भी मिट्टी में जैविक अंश बढ़ाने के निर्देश दिए गए हैं। विश्व मृदा दिवस पर केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) शिमला में कार्यशाला के दौरान संस्थान के फसल उत्पादन संभाग के प्रधान वैज्ञानिक डाॅ. अनिल चौधरी ने यह खुलासा किया। उन्होंने कहा कि खादों और कीटनाशकों का सावधानी से प्रयोग, नियमित तौर पर मृदा जांच और कृषि अवशेषों का वैज्ञानिक तरीके से निपटारा कर मिट्टी की सेहत सुधारी जा सकती है।

फसल उत्पादन संभाग के अध्यक्ष डाॅ. जगदेव शर्मा ने बताया कि मिट्टी की गुणवत्ता सीधे तौर पर भोजन की गुणवत्ता और मात्रा से जुड़ी है। स्वस्थ मिट्टी एक जीवित तत्व है। मिट्टी में बैक्टीरिया, कवक, शैवाल, नेमाटोड, कीड़े और केंचुए सहित कई तरह के जीव पाए जाते हैं। स्वस्थ मिट्टी अपने कार्बनिक पदार्थ से जलवायु परिवर्तन के बुरे प्रभाव को कम करने में योगदान देती है। कार्यशाला के दौरान सीपीआरआई के सामाजिक विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डाॅ. आलोक कुमार ने बताया कि विश्व मृदा दिवस पर सीपीआरआई के क्षेत्रीय केंद्र शिलांग, पटना और मेरठ भी कार्यक्रम आयोजित किए गए।


संस्थान के निदेशक डाॅ. ब्रजेश सिंह ने कहा कि हरित क्रांति के बाद अनाज की विदेशी किस्में भारत में आईं, रासायनिक खादों को अत्यधिक प्रयोग कर उत्पादन तो बढ़ा लेकिन मिट्टी की गुणवत्ता बिगड़ती चली गई। मौजूदा समय में मिट्टी की सेहत सुधारना बेहद जरूरी है। डाॅ. ब्रजेश ने कार्यशाला में भाग लेने वाले महात्मा फुले कृषि विद्यापीठ (कृषि विश्वविद्यालय) राहुरी, अहिल्यानगर महाराष्ट्र के कृषि वैज्ञानिकों और छात्रों को सीपीआरआई की उपलब्धियों से भी अवगत करवाया।




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