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कैसे हुआ चूल्हा उद्योगों का अस्तित्व खत्म,जानिए

                                            2015 के बाद से नहीं मिला प्रदेश को औद्योगिक पैकेज

सोलन,ब्यूरो रिपोर्ट 

हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र परवाणू से चूल्हा उद्योगों का अस्तित्व पूरी तरह से खत्म हो गया है। देश को 60 फीसदी चूल्हा उपलब्ध करवाने वाले क्षेत्र में अब केवल दो उद्योग रह गए हैं। 

कारण यह है कि 2015 के बाद से अब तक प्रदेश को औद्योगिक पैकेज नहीं मिल पाया है। कोरोना के बाद हालात और खराब हो गए। ऐसे में परवाणू में लगे 98 फीसदी चूल्हा उद्योग दूसरे राज्यों में पलायन कर चुके हैं। आलम यह है कि इस ओर किसी ने भी ध्यान नहीं दिया है। ये चूल्हा उद्योग गुजरात, पंजाब समेत अन्य राज्यों में स्थापित हो गए हैं। प्रदेश में बिजली की महंगी दरों के कारण सबसे पहले चूल्हा उद्योगों ने यहां से पलायन करना शुरू किया। जबकि हिमाचल अन्य राज्यों को बिजली उपलब्ध करवाता है।


लेकिन यहां पर बिजली की बढ़ती दरों के कारण उद्योग मालिकों ने उद्योग शिफ्ट कर दिए। यही नहीं, गुड्स एवं सर्विस टैक्स (जीएसटी) आने के बाद सभी दरें एक सामान हो गईं। इससे पहले उद्योगों को प्रदेश में टैक्स में काफी रियायत मिलती थी। इसी के साथ लंबे समय से केंद्र सरकार और प्रदेश सरकार की ओर से परवाणू के लिए कोई योजना न तैयार करवाने के कारण चूल्हा उद्योगों के मालिकों ने पलायन करना ठीक समझा। गौर रहे कि वर्ष 2002-03 में परवाणू को बड़ा औद्योगिक पैकेज मिला था।


औद्योगिक पैकेज मिलने के बाद सबसे पहले यहां पर दूसरे राज्यों से चूल्हा उद्योग आए। क्षेत्र के कामली समेत अन्य जगहों पर चूल्हा उद्योग लगे। पांच वर्षों में परवाणू में करीब 87 छोटे-बड़े चूल्हा उद्योग स्थापित हो गए। लेकिन वर्तमान में केवल दो चूल्हा उद्योग रह गए हैं।परवाणू में चूल्हा उद्योगों में उपयोग होने वाला कच्चा माल अन्य राज्यों से आता था। ऐसे में ट्रांसपोर्ट में काफी खर्च आता था। इसी के साथ जब माल तैयार होता था तो भी बेचने के लिए उद्योग मालिकों को अधिक लागत आ रही थी। इस कारण भी चूल्हा उद्योग दूसरी जगह शिफ्ट हो गए। ये उद्योग अधिकतर उन जगहों में शिफ्ट जहां पर कच्चा माल भी कम लागत में उपलब्ध हो रहा है।



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