आलू के अलग-अलग दामों ने बढ़ाई किसानों की चिंता
ऊना,ब्यूरो रिपोर्ट
प्रदेश में आलू का गढ़ माने जाने वाले ऊना के किसानों को इस फसल की बिक्री के समय एक जैसे दाम नहीं मिल पाते। किसानों में यह रोष अकसर देखा जाता है कि अगर फसल पर मेहनत समान है तो कीमत एक जैसी क्यों नहीं मिलती। दरअसल, मंडियों में आलू की कीमत आए दिन बदलती रहती है।
इससे फसल की बिक्री के दौरान कई किसान तो अच्छा लाभ कमा जाते हैं। वहीं, किसी अन्य दिन फसल को बिक्री के लिए मंडी पहुंचने वालों को 20 से 25 प्रतिशत कम दाम मिलते हैं। इससे वे खुद को ठगा महसूस करते हैं।जानकारी के मुताबिक ऊना जिले में इस समय आलू की ताजा फसल मंडियों में पहुंचाई जा रही है। हालांकि, अभी तक आलू का भाव अच्छा चल रहा है लेकिन शुरुआती कीमत और अब की बात करें तो 2000 रुपये का अंतर आ चुका है। फसल के शुरुआती दिनों में जहां 5,000 प्रति क्विंटल के आसपास फसल बिकी।
वर्तमान में 2500 से 3000 प्रति क्विंटल के आसपास दाम चल रहे हैं। अभी बड़े किसानों ने फसल को मंडी पहुंचाना शुरू नहीं किया है। कुछ दिन में पंजाब और उत्तर प्रदेश का आलू भी मंडियों में पहुंचने लगेगा। इसके बाद आमद और बढ़ जाएगी, जिसका सीधा असर कीमत पर होता है।किसान रोहित कुमार का कहना है कि गेहूं और मक्की की तरह हमारे किसान अब आलू भी बड़े स्तर पर उगाने लगे हैं। इस फसल के उत्पादन को देखते हुए न्यूनतम दाम तय किए जाने चाहिए। समय के साथ आलू उगाने वाले किसानों की संख्या बढ़ी है। इसलिए सरकार और प्रशासन को इस फसल के बारे में गंभीर होना चाहिए।किसान विवेक कुमार ने कहा कि आलू पर खर्च अन्य फसलों के मुकाबले अधिक आता है। कई बार दाम अच्छे नहीं मिलते, जिससे लाखों का नुकसान हो जाता है। सरकार को इस फसल के लिए अलग से पॉलिसी लागू करनी चाहिए जिसमें किसानों के नुकसान की भरपाई का प्रावधान होना चाहिए।
किसान शिव कुमार ने बताया कि कई बार मौसम की मार से आलू की फसल तबाह हुई है। किसान कर्ज में डूबे लेकिन किसी ने मदद नहीं की। कहा कि सरकार कोई भी आए, लेकिन किसानों के लिए कोई नहीं सोचता। आलू की फसल से अगर कई किसानों की आय अच्छी हुई है तो कई नुकसान का शिकार भी हुए। कुछ नियम इस फसल के लिए भी तय होने चाहिए।किसान प्रवीण कुमार ने बताया कि इस बार आलू के भाव अच्छे हैं लेकिन किसी भी दिन फसल को एक समान दाम नहीं मिला। कई बार तो सीधा 500 से 700 रुपये प्रति क्विंटल दाम कम हो जाते हैं। ऐसे में जिस किसान तो दो माह कड़ी मेहनत कर फसल मंडी तक पहुंचाई, उस पर क्या बीतेगी। कम से कम इस फसल के दामों में स्थिरता तो आनी चाहिए।
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