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आखिर क्यों ?मंडी के बाहर पांच दिन से खड़े हैं लदे वाहन

                                       यह कैसी सुविधा, धान बेचने के लिए गिड़गिड़ा रहे किसान

काँगड़ा,ब्यूरो रिपोर्ट 

किसान जाएं तो जाएं कहां, यह सबसे बड़ा सवाल कांगड़ा जिले के किसानों के लिए अपनी धान की फसल बेचने के लिए बन चुका है। किसानों को अपनी फसल बेचने के लिए गिड़गिड़ाना पड़ रहा है। रियाली मंडी का प्लेटफार्म धान से भर चुका है और किसान अब फतेहपुर मंडी का रुख कर रहे हैं।

जिला के शाहपुर और कांगड़ा के आसपास के किसानों के धान से भरे आठ ट्रकों, ट्रेक्टरों सहित कुल 18 माल वाहक वाहन मंडी परिसर में पिछले पांच-छह दिन से खाली होने का इंतजार कर रहे हैं। इनके अलावा अन्य किसान टोकन लगने का इंतजार कर रहे हैं, जबकि उनकी फसल अभी भी खेतों में पड़ी हुई है।पहले प्रदेश के निचले क्षेत्र रियाली के किसान पंजाब में अपनी फसल बेचते थे, लेकिन कृषि पर तीन कानून आने के बाद अब पंजाब में केवल वही किसान अपनी फसल बेच सकते हैं, जिनकी जमीन पंजाब में है। वहां फसल बेचने के समय पंजाब की जमीन का पर्चा और आधार कार्ड होना जरूरी कर दिया गया है।


हिमाचल के किसान जो पंजाब में अपनी फसल बेचते थे वे किसी पंजाब के किसान के नाम पर फसल बेचते थे, लेकिन उन्हें यह डर सताता रहता था कि कहीं उसका पैसा मर न जाए। क्योंकि फसल का पैसा उसी किसान के खाते में जाता था, जिसके नाम पर फसल दर्ज होती थी। इसी समस्या को देखते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार ने मिलवा, रियाली और फतेहपुर में मंडियां खोल दीं, लेकिन अब समस्या यह आन पड़ी है कि सरकार ने धान की खरीद तो कर ली, लेकिन उसे लिफ्ट करने का प्रोसेस धीमा है। मात्र दो शैलर राजा का बाग और ढलियारा में स्थित हैं, को मात्र 2500 क्विंटल धान से चावल बनाने को दिए जा रहे हैं, उस पर भी एक शर्त लगा दी है कि जब तक दिए धान का चावल शैलर से वापस नहीं आता, तब तक दूसरी खेप नहीं दी जाएगी।


वहीं, एपीएमसी के नव नियुक्त सदस्य एवं हिमाचल किसान संघ इकाई फतेहपुर के अध्यक्ष और रियाली मंड निवासी विजय कुमार ने आरोप लगाते हुए कहा कि विभाग किसानों की ओर न देख के मात्र जिला के दो शैलरों को अमीर करने के प्रयास में हैं और उन पर ही मेहरबान क्यों है। उन्होंने कहा कि सरकार को जिला ऊना और अन्य जिलों के बड़े-बड़े शैलरों से संपर्क करना चाहिए ताकि लिफ्टिंग जल्दी हो सके। मंडियों में पांच से छह दिनों तक वाहन खड़े रह रहे हैं। किसान तिरलोक सिंह, सुनीत आदि का कहना हैं कि अब हालात यह बन चुके हैं कि किसान मंडियों में धान बेचने के किए बैठें या अपनी नई फसल को लगाने की तैयारी करें या बीजी हुई सरसों कि तरफ ध्यान दें या खेतों में पड़े धान कि तरफ ध्यान दें, आखिर किसान जाएं तो जाएं कहां। उन्होंने कहा कि सरकार एक तरफ किसानों की वित्तीय स्थिति को सुधारने की बात करती है, लेकिन फसल का न बिकना उनके मनोबल को तोड़ देगा। समय रहते खेतों से फसल न उठाई तो बारिश से किसानों की फसल खेतों में बर्बाद हो जाएगी, जिससे किसानों को काफी नुकसान होगा।






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