तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर, बनीं 321 नई झीलें
कुल्लू,ब्यूरो रिपोर्ट
ग्लोबल वार्मिंग के पांव पसारने से हिमाचल में बर्फ की चादर छोटी पड़ने लगी है। सतलुज, रावी, ब्यास और चिनाब बेसिन के निचले क्षेत्रों में बर्फ की यह चादर 10.02% तक सिकुड़ गई है। रावी बेसिन पर सबसे अधिक 22.42% तक बर्फ घटी है।
जंगलों में आग, पर्यटन स्थलों पर क्षमता से अधिक वाहन और वायु प्रदूषण से तापमान बढ़ रहा है। ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। हिमालय के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में लगातार नई झीलें बन रही हैं। अकेले सतलुज बेसिन पर ही 321 नई झीलें बन गई हैं। ग्लोबल वार्मिंग के खतरों के प्रति इन आंकड़ों ने एक बार फिर आगाह किया है।हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद का जलवायु परिवर्तन केंद्र इस पर निरंतर अध्ययन कर रहा है। झीलों के बनने और ग्लेशियरों की निगरानी के लिए उपग्रहों (सैटेलाइट) की मदद ली जा रही है।
उपग्रह से मैपिंग में सतलुज बेसिन में 321 झीलों की वृद्धि पाई गई है। सतलुज बेसिन पर 2020 में 1,359 झीलें थीं, जो 2021 में बढ़कर 1,632 हो गईं। अब इनकी संख्या 1,953 हो गई है। 2022-23 में दिसंबर से फरवरी तक मुख्य रूप से हिमालय क्षेत्र में देरी से बर्फबारी की रिपोर्ट भी तैयार की गई है। इसमें सतलुज, रावी, ब्यास और चिनाब बेसिन के निचले क्षेत्रों में लगभग 10.02% कम बर्फ आंकी गई है।उपग्रह डाटा का विश्लेषण करने पर रावी बेसिन पर सबसे अधिक 22.42% कम बर्फबारी आंकी गई है। 2021-22 मेंं 2096.48 वर्ग किलोमीटर और 2022-23 में यह 1626.46 वर्ग किलोमीटर रह गया। सतलुज बेसिन में 2021-22 में 11398.81 के मुकाबले 2022-23 में 9733.77 वर्ग किलोमीटर रह गया। ब्यास में 2021-22 में 2391.49 से 2022-23 में घटकर 2226.20 वर्ग किमी रहा। चिनाब बेसिन में सबसे कम 0.39 की कमी दर्ज हुई। 2021-22 के 7357.22 से 2022-23 में 7328.86 वर्ग किमी दायरे में बर्फबारी हुई।
हिमाचल प्रदेश विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद का जलवायु परिवर्तन केंद्र इस पर निरंतर अध्ययन कर रहा है। झीलों के बनने और ग्लेशियरों की निगरानी के लिए उपग्रहों (सैटेलाइट) की मदद ली जा रही है। उपग्रह से मैपिंग में सतलुज बेसिन में 321 झीलों की वृद्धि पाई गई है। सतलुज बेसिन पर 2020 में 1,359 झीलें थीं, जो 2021 में बढ़कर 1,632 हो गईं। अब इनकी संख्या 1,953 हो गई है। 2022-23 में दिसंबर से फरवरी तक मुख्य रूप से हिमालय क्षेत्र में देरी से बर्फबारी की रिपोर्ट भी तैयार की गई है। इसमें सतलुज, रावी, ब्यास और चिनाब बेसिन के निचले क्षेत्रों में लगभग 10.02% कम बर्फ आंकी गई है।उपग्रह डाटा का विश्लेषण करने पर रावी बेसिन पर सबसे अधिक 22.42% कम बर्फबारी आंकी गई है। 2021-22 मेंं 2096.48 वर्ग किलोमीटर और 2022-23 में यह 1626.46 वर्ग किलोमीटर रह गया।
सतलुज बेसिन में 2021-22 में 11398.81 के मुकाबले 2022-23 में 9733.77 वर्ग किलोमीटर रह गया। ब्यास में 2021-22 में 2391.49 से 2022-23 में घटकर 2226.20 वर्ग किमी रहा। चिनाब बेसिन में सबसे कम 0.39 की कमी दर्ज हुई। 2021-22 के 7357.22 से 2022-23 में 7328.86 वर्ग किमी दायरे में बर्फबारी हुई। चारों बेसिन का कुल औसत क्षेत्र 2021-22 में 23244 वर्ग किलोमीटर था, जो 2022-23 में घटकर 20915.29 वर्ग किलोमीटर रह गया।ग्लेश्यिरों और झीलों के टूटने की स्थिति में बाढ़ से बचाव के लिए किन्नौर, कुल्लू और लाहौल-स्पीति में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगेंगे। तीनों जिलों के उपायुक्तों को सारी स्थितियों का आकलन करने और स्थान चिह्नित करने के लिए कहा गया था। लाहौल-स्पीति के उपायुक्त राहुल कुमार ने बताया कि विभिन्न विभागों की एक संयुक्त टीम ने इसका निरीक्षण कर रिपोर्ट भेज दी है। लाहौल-स्पीति के घेपन पीक में इसके लिए जगह चिह्नित की गई है। वहीं, किन्नौर में सांगला धार में अर्ली वार्निंग सिस्टम लगेगा। कुल्लू जिला में भी जगह चिह्नित की जा रही है।ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान लगातार बढ़ रहा है। ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। सतलुज बेसिन पर झीलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। सतलुज बेसिन में 2021 के मुकाबले 2022 में 321 नई झीलें बनी हैं।
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