बच्चों की सुरक्षा पर भारी पड़ रहे पुरातत्व विभाग के नियम
काँगड़ा,ब्यूरो रिपोर्ट
कांगड़ा जिला के प्रसिद्ध मसरूर रॉक कट टेंपल के निकट चल रहे 72 साल पुराने स्कूल पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) का ऐतिहासिक महत्व की संरक्षित इमारतों के लिए लागू कानून भारी पड़ रहा है। यह कानून 100 मीटर के दायरे तक किसी निर्माण की इजाजत नहीं देता है।
जिसकी वजह से इस स्कूल के बच्चे अनसेफ घोषित हो चुके भवन में कक्षाएं लगाने को मजबूर हैं।स्थानीय लोगों का कहना है कि तूफान या तेज हवाएं चलने पर स्लेटपोश जर्जर स्कूल भवन की छत हिलने लगती है। पाबंदियों की हद यहां तक है कि स्कूल प्रशासन बच्चों के लिए एक शौचालय का निर्माण भी नहीं करवा पा रहा है। शिक्षा के अधिकार पर भारी पड़ रहे इस नियम की वजह से मसरूर स्कूल के लिए पूर्व में स्वीकृत हो चुकी धनराशि कई बार वापस भी हो चुकी है। दुर्गम इलाके में चल रहे इस स्कूल में अध्ययनरत बच्चों के अभिभावकों की मजबूरी यह भी है कि उनके पास बच्चों को किसी अन्य स्कूल भेजने का कोई विकल्प मौजूद नहीं है।
हैरानी की बात यह है कि हाल ही में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने खुद अपने लिए तो मंदिर के समीप सार्वजनिक शौचालय और पर्यटकों की एंट्री के लिए एक काउंटर का निर्माण कर लिया है। लेकिन शिक्षा के मंदिर के लिए कई तरह की अड़चनें खड़ी कर बच्चों के भविष्य पर बंदिशें लगा दी हैं। बरसात के मौसम में अभिभावकों को अपने बच्चों की चिंता सताती है। धूप के बावजूद स्कूल के विद्यार्थी खुले आसमान के नीचे कक्षाएं लगाने को मजबूर हैं।दरअसल मसरूर में हिमाचल का पहला रॉक कट टैंपल है। मंदिर परिसर के साथ ही राजकीय प्राथमिक पाठशाला और राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशालाएं चल रही हैं।
कक्षा एक से लेकर पांचवीं कक्षा तक कुल 14 विद्यार्थी शिक्षा हासिल कर रहे हैं। सभी पांचों कक्षाएं स्कूल के एकमात्र भवन में चल रही हैं। जबकि स्कूल के एक अन्य कमरे में स्कूल कार्यालय चलता है और दूसरे कमरे में मिड-डे-मील बनता है। एक अन्य कच्चा कमरा बारिश में जमींदोज हो चुका है। इसी तरह राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक में कुल 60 विद्यार्थी शिक्षा हासिल कर रहे हैं। स्कूल में कुल आठ कमरे हैं, जिसमें से पांच कमरे असुरक्षित घोषित हो चुके हैं। शेष तीन कमरों में स्कूल कार्यालय और पांच कक्षाएं चल रही हैं।
0 Comments