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आखिर क्यों हिमाचल में घटा सेब उत्पादन

                                            पिछले साल की तुलना में 20 हजार मीट्रिक टन की गिरावट

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

हिमाचल में साल दर साल सेब उत्पादन में गिरावट आ रही है। इस साल भी सेब उत्पादन में करीब 20 हजार मीट्रिक टन की गिरावट आई है। मंडी मध्यस्थता योजना (एमआईएस) के तहत सेब खरीद भी पिछले साल के मुकाबले करीब 17,000 मीट्रिक टन कम हुई है। 

प्रदेश में सेब सीजन समापन की ओर है। शिमला के ऊंचाई वाले कुछ क्षेत्रों के अलावा किन्नौर और लाहौल-स्पीति में बहुत कम सेब बचा है।दिसंबर 2023 से मई 2024 के बीच पर्याप्त बारिश और बर्फबारी न होने के कारण चिलिंग ऑवर प्रभावित होने से फसल को नुकसान हुआ। इस साल सीजन करीब 15 दिन देरी से शुरू हुआ। साल 2022-23 में इस समय तक 4.07 लाख मीट्रिक टन सेब कारोबार हुआ था, जबकि इस साल 3.87 लाख मीट्रिक टन ही सेब कारोबार हुआ है। 

एमआईएस के तहत पिछले साल अब तक 49,000 मीट्रिक टन सेब खरीद हुई थी। इस साल 32,000 मीट्रिक टन सेब खरीदा जा सका है।हालांकि यूनिवर्सल कार्टन लागू करने से बागवानों को 20 किलो सेब पैकिंग में रिकाॅर्ड दाम मिले। हिमाचल के करीब डेढ़ लाख परिवार सीधे तौर पर सेब बागवानी से जुड़े हैं। प्रदेश में 5000 करोड की सेब आर्थिकी है, सेब उत्पादन घटने से प्रदेश की विकास दर प्रभावित होने की आशंका है। हालांकि बागवानी विभाग के निदेशक विनय सिंह का कहना है कि सेब कारोबार में 20 हजार मीट्रिक टन का ही अंतर है, अभी सीजन बाकी है। 

सीजन खत्म होते होते सेब उत्पादन बीते साल के बराबर पहुंचने की संभावना है।जलवायु परिवर्तन के चलते साल दर साल घटते सेब उत्पादन से प्रदेश की विकास दर प्रभावित होती है। पैदावार घटने से न केवल बागवानों की आय में कमी आती है, बल्कि इससे अनेकों व्यवसायों में आय व रोजगार प्रभावित होता है, जो बागवानों के खर्चों से जुड़े होते हैं। इससे व्यापक तौर पर राज्य की आय, निवेश और रोजगार प्रभावित होता है। प्रदेश के कुल फल उत्पादन में सेब की 85 प्रतिशत भागीदारी है, जिससे प्रदेश की आय और रोजगार में सेब का महत्व और भी बढ़ जाता है। 

उपभोग व निवेश के माध्यम से अनेकों करों में योगदान के चलते इस सेक्टर से प्रदेश के राजस्व को बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका है। अधिकांश सीमांत बागवानों की आजीविका और रोजगार के चलते सेब उत्पादन में बढ़ती लागत को घटाने के लिए सरकार का प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रोत्साहन बेहद जरूरी हो गया है।इस सीजन में मौसम में असमानता रही, जिससे ड्रॉपिंग भी अधिक हुई। सेब उत्पादन बढ़ाने के लिए विश्व बैंक पोषित हाई डेंसिटी प्लांटेशन प्रोजेक्ट के तहत प्रयास किए जा रहे हैं। प्रति हेक्टेयर उत्पादन बढ़ाने के लिए हाई डेंसिटी पर जाना जरूरी है। प्लांटेशन बढ़ाने की जरूरत है। 

परंपरागत बगीचे में प्रति बीघा अभी 25 से 30 पेड़ लगते हैं और फसल देने में भी 12 से 14 साल लग जाते हैं, इसलिए हाई डेंसिटी ही विकल्प है। सेब उत्पादन बढ़ाने के लिए अत्याधुनिक तकनीकों और नए रूट स्टॉक का इस्तेमाल करना होगा।हर साल 30 से 40 लाख नए पौधे लगाए जा रहे हैं, इस अनुपात में उत्पादन 8 से 10 लाख मीट्रिक टन होना चाहिए था, लेकिन यह घट रहा है। जलवायु परिवर्तन से सेब बेल्ट 1000 फीट ऊपर शिफ्ट हो गई है। आर्थिक तौर पर बागवानी घाटे का सौदा बन रही है। हालांकि सीजन की शुरुआत में कुछ अच्छे रेट मिल जाते हैं। सेब उत्पादन गिरने के कारणों की जांच के लिए बागवानों, बागवानी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों और सरकार के प्रतिनिधियों को मंथन कर भविष्य के लिए रोड मैप बनाना चाहिए।



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