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शहनाई की मंगल ध्वनि हमेशा के लिए क्यों हुई शांत

                                            देश ही नहीं अमेरिका तक गूंजी सूरजमणि की शहनाई

मंडी,ब्यूरो रिपोर्ट 

देवभूमि की लोक संस्कृति में गूंजने वाली शहनाई की मंगल ध्वनि हमेशा के लिए शांत हो गई। हिमाचल के बिस्मिल्लाह खान कहे जाने वाले प्रसिद्ध शहनाई वादक सूरजमणि के अचानक निधन से हिमाचली लोक संस्कृति को बड़ी क्षति पहुंची है।

सूरजमणि ने अपनी शहनाई से प्रदेश की लोक संस्कृति को जीवित रखा और दुनिया भर में पहाड़ी शहनाई की गूंज भी सुनाई।मंडी जिले के नाचन क्षेत्र की चच्योट पंचायत से ताल्लुक रखने वाले सूरजमणि ने अपने संगीत सफर की शुरुआत तुरही से की थी। सूरजमणि बैंड पार्टी के साथ तुरही बजाते थे। इसके बाद उनकी मुलाकात हिमाचल के प्रसिद्ध संगीतकार एसडी कश्यप से हुई। एसडी कश्यप ने सूरजमणि की प्रतिभा को निखार और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई। 

इसके बाद वह हिमाचल के बिस्मिल्लाह खान के नाम से मशहूर हो गए। सूरजमणि ने हजारों हिमाचली नाटियों में अपनी शहनाई की धुन से लोगों के दिलों को छुआ। अमेरिका में भी उन्होंने अपनी शहनाई से धुन से हिमाचली लोक संस्कृति की छाप छोड़ी। ठाकुर दास राठी, नरेंद्र ठाकुर, कुलदीप शर्मा, ममता भारद्वाज, गीता भारद्वाज, विक्की चौहान समेत हिमाचल के तमाम कलाकारों ने सूरजमणि के निधन पर गहरा दुख जताया है। इन कलाकारों ने कहा कि लोक संस्कृति के लिए यह बहुत बड़ी क्षति है, जिसकी भरपाई करना मुश्किल है।

प्रसिद्ध संगीतकार एसडी कश्यप ने बताया कि सूरजमणि हिमाचल प्रदेश के उन गिने-चुने कलाकारों में से एक थे, जिन्होंने लोक संगीत के लिए सबसे ज्यादा योगदान दिया। 1986 में उन्हें उनके ताया कुंदन लाल के साथ सकरोहा स्थित सूरज साउंड एंड साउट स्टूडियो में लाया गया था। पहले वह तुरही बजाते थे और बाद में शहनाई वादन शुरू किया। उस समय लाइव रिकॉर्डिंग का दौर था, जिसमें एक गलती होने पर पूरी रिकॉर्डिंग दोबारा की जाती थी। 15 दिन पूर्व ही सूरजमणि से एक रिकॉर्डिंग कार्य के बारे में बात हुई थी, लेकिन व्यस्तता के कारण वह इसे पूरा नहीं कर पाए।

मांडव्य कला मंच के संस्थापक कुलदीप गुलेरिया ने कहा कि सूरजमणि उनके बड़े भाई की तरह थे। वह हर कार्यक्रम में समय से पहले पहुंच जाते थे। वर्ष 2007 से उन्हें जिला प्रशासन की ओर से महाशिवरात्रि महोत्सव की सांस्कृतिक संध्याओं में मंगलाचरण के लिए चयनित किया गया। सूरजमणि को हमेशा यह मलाल रहता था कि पाश्चात्य संगीत को जितना बढ़ावा मिल रहा है, उतना ही लोक संगीत को भी मिलना चाहिए।लोक कलाकार बीरी सिंह ने कहा कि सूरजमणि उनकी बुआ के बेटे थे। अटैक आने से चार दिन पूर्व उन्होंने मंत्री वीरेंद्र कंवर के बेटे की शादी के लिए मुझे जिम्मेवारी सौंपी थी। उनके इस तरह चले जाने से मन दुखी है।




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