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आखिर क्यों ? सात दिनों तक तपस्वियों की तरह रहते हैं 3,000 कारकून

                                            कारकून देवताओं के शिविरों में बने खाने को ही क्यों खाते है 

कुल्लू,ब्यूरो रिपोर्ट 

देवी-देवताओं के महाकुंभ कुल्लू दशहरा में देवताओं के मुख्य कारकून तपस्वियों की तरह रहते हैं। देव परंपरा का निर्वहन करते हुए यह कारकून देवताओं के शिविरों में बने खाने को ही खाते हैं। यहां तक कि वह बाहर बाजार में होटल और ढाबा में पानी व चाय भी नहीं पी सकते हैं।

इस बार दशहरा उत्सव में जिलाभर से लगभग 300 से ज्यादा देवी-देवता आए हैं और ऐसे करीब 3,000 कारकूनों को देव नियमों का पालन करना पड़ता है।हर देवता के साथ करीब 10 से 12 मुख्य कारकून ऐसे होते हैं जसे देव नियमों से बंधे रहते हैं। उन्हें रात-दिन अपने अधिष्ठाता की चाकरी करनी पड़ती है। इसमें मुख्यत: देवता का कारदार, पुजारी, गूर, पुरोहित, कायथ, भंडारी सहित कुछ अन्य कार करिंदे शामिल है।


 हालांकि देवता के साथ इन नियमाें का पालन करना पड़ता है, कुल्लू दशहरा में इन नियमों का पालन करना किसी अग्नि परीक्षा से कम नहीं है।देव समाज के जानकारी एवं जिला देवी देवता कारदार संघ के अध्यक्ष दोत राम ठाकुर, उपाध्यक्ष शेर सिंह, टीसी महंत, कारदार भागे राम राणा, इंद्र सिंह व अमर सिंह ने कहा कि दशहरा में देव पंरपराओं को निभाना पड़ता है और नियमों के तहत ही देवता के मुख्य कारकूनों को चलना पड़ता है। कहा कि किसी भी तरह की लापरवाही बतरने से देवता नाराज हो जाते हैं और इसके लिए धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन करना पड़ता है।

दशहरा में देवताओं के मुख्य कारकूनों को देव नियमों पालन करना एक चुनौती है। उन्हें हर वक्त देवता के बनाए नियमों के अनुसार चलना पड़ता है। उनके लिए खाने-पीने से लेकर रहने के लिए कई बंदिशों का सामना करना पड़ता है। उन्हें दशहरा के सात दिनों तक अपने अस्थायी शिविरों में ही खाना बना कर खाना पड़ता है।अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा का माहौल तपोस्थली जैसा बना हुआ है। ढोल-नगाड़ों, करनाल व नरसिंगों की स्वरलहरियों से पूरा वातावरण देवमय हो गया है। इस बीच जिलेभर से आए 300 से अधिक देवी-देवताओं के प्रति गहरी आस्था है। लोग दशहरा मैदान में बने अस्थायी शिविरों से देवताओं को अपने घर ले जो रहे हैं। देवी-देवताओं से मांगी मन्नत को पूरा होने पर धाम दी जा रही है। किसी ने सरकारी नौकरी लगने से लिए मन्नत मांगी थी तो किसी ने घर में पारिवारिक समस्या के दूर होने पर तो किसी ने बीमारी से ठीक होने पर अपने ईष्ट देवताओं के आगे मन्नत रखी थी। मन्नत पूरी होने पर लोग अब मौका देखकर धाम दे रहे हैं1

।10 साल बाद कुल्लू दशहरा में आए शमशरी महादेव आनी और भझारी कोट को भक्त ने जिला मुख्यालय के बाला बेहड़ में घर में बुलाकर धाम दी गई। इसके अलावा जिले के दूसरे इलाकों से आए देवी-देवताओं को भी लोग अपने घर में बुला रहे हैं। वहीं, देवताओं को अस्थायी शिविरों में भी रोज मन्नत पूरी होने पर धाम देने का दौर चल रहा है। देव समाज के जानकारों के अनुसार हर दिन 50 से 60 फीसदी देवताओं के अस्थायी शिविरों में लोगों की ओर से मन्नत पूरी होने पर धाम दी जा रही है। जिला देवी-देवता कारदार संघ के अध्यक्ष दोत राम ठाकुर, उपाध्यक्ष शेर सिंह ठाकुर व देवता कोट भझारी के कारदार भागे राम राणा ने कहा कि दशहरा में आने-जाने के साथ ढालपुर में अस्थायी शिविर में भी लोग मन्नत को पूरा करने के लिए आते हैं। राणा ने कहा कि लोगों ने देवता के पास कई तरह की मन्नतें रखी होती हैं और पूरा होने पर धाम दी जाती है।





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