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शानन बिजली परियोजना पर पंजाब सरकार को नोटिस जारी

                                         सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार की याचिका पर की सुनवाई

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

सुप्रीम कोर्ट ने मंडी की शानन बिजली परियोजना पर पंजाब सरकार को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस हिमाचल सरकार की पंजाब सरकार के सिविल सूट को रद्द करने की अर्जी की सुनवाई के बाद दिया गया है। पंजाब सरकार लीज खत्म होने के बाद इस परियोजना को अपने पास रखना चाह रहा है, जबकि हिमाचल सरकार लीज अवधि खत्म होने के बाद इस पर प्रदेश की जनता का हक जता रही है। 

हिमाचल प्रदेश सरकार के महाधिवक्ता अनूप रतन ने इसकी पुष्टि की है। शानन पर उच्चतम न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर से पंजाब सरकार के सिविल सूट को रद्द करने की अर्जी पर सुनवाई के बाद नोटिस जारी कर आठ नवंबर तक जवाब देने के आदेश दिए हैं। प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि पंजाब सरकार की ओर से सिविल सूट सुप्रीम कोर्ट में दायर ही नहीं किया जा सकता है, क्योंकि यह एक समझौते पर आधारित है और अनुच्छेद 131 के तहत कोई भी मुकदमा जो समझौते पर आधारित हो, वह वहां पर नहीं चलाया जा सकता है। न्यायालय ने प्रथमदृष्टया सरकार की दलीलों को सही समझते हुए उस याचिका पर नोटिस जारी कर पंजाब सरकार को जवाब देने के आदेश दिए हैं। 

पंजाब सरकार की ओर से शानन परियोजना को अपने पास रखने की याचिका पर भारत सरकार को भी जवाब देने के आदेश दिए हैं। बता दें कि शानन परियोजना के लिए मंडी के तत्कालीन राजा ने 1925 में 99 वर्षों के लिए लीज पर जमीन दी थी। लीज मार्च 2024 में समाप्त हो चुकी है। अब इस परियोजना पर हिमाचल का हक है। पंजाब सरकार ने इसे अपने पास रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।110 मेगावाट की शानन जलविद्युत परियोजना मंडी जिले के जोगिंद्रनगर में है। 1925 में बने इस प्रोजेक्ट पर इस समय पंजाब राज्य विद्युत निगम लिमिटेड का नियंत्रण है। हिमाचल सरकार ने 99 साल के पट्टे का विस्तार नहीं करने और मार्च 2024 के बाद परियोजना को खुद संभालने के लिए केंद्र सरकार को आवेदन किया है। 15 अगस्त 1947 से 9 अप्रैल 1965 तक पंजाब ने बिना किसी औचित्य के इस परियोजना पर कब्जा कर लिया था। 

वर्ष 1965 और 1975 में हुए समझौतों के तहत हिमाचल सरकार और इसकी जनता के हितों पर ध्यान नहीं दिया गया।शानन बिजली परियोजना के संंबंध में 1925 में तत्कालीन मंडी राज्य के शासक राजा जोगिंद्र सेन और कर्नल बीसी बैटी के बीच 99 साल की लीज का समझौता हुआ था। कर्नल बीसी बैटी ब्रिटिश सरकार का प्रतिनिधित्व करते थे और अविभाजित पंजाब के मुख्य अभियंता के रूप में कार्यरत थे। समझौते के तहत परियोजना के लिए पानी का उपयोग ऊहल नदी से किया जाना था, जो आजादी से पहले अविभाजित पंजाब, लाहौर और दिल्ली के लिए बिजली पैदा करने के लिए ब्यास नदी की एक सहायक नदी है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में दलील दी है कि पंजाब सरकार का मुकदमा कानूनन वर्जित है। आवेदन में कहा गया है कि पंजाब सरकार कभी भी भूमि पट्टा समझौते पर हस्ताक्षरकर्ता नहीं थी, इसलिए निषेधाज्ञा मांगने वाला वर्तमान मुकदमा भूमि के असली मालिक के खिलाफ बनाए रखने योग्य नहीं है। वादी ने कभी भी परियोजना के स्वामित्व की घोषणा नहीं मांगी। 

संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत पंजाब सरकार का मुकदमा कार्रवाई का कोई कारण नहीं बताता है और कानूनन वर्जित है, जो किसी राज्य को अंतरराज्यीय विवाद के मामले में सीधे सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की अनुमति देता है।हिमाचल सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे को खारिज करने का अनुरोध किया, जिसमें उसने 99 साल के पट्टा समझौते की समाप्ति पर शानन जलविद्युत परियोजना का नियंत्रण अपने हाथ में लेने से रोकने की मांग की है। जस्टिस अभय एस ओका और पंकज मिथल की पीठ ने कहा कि वह सबसे पहले 8 नवंबर को हिमाचल प्रदेश सरकार के आवेदन पर सुनवाई करेगी, जिसमें नागरिक प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) के आदेश 7 नियम 11 के तहत पंजाब सरकार के मुकदमे की स्थिरता को चुनौती दी गई है। पीठ ने कहा, हमें पहले मुकदमे के खिलाफ उठाई गई प्रारंभिक आपत्तियों को सुनना होगा।





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