हर साल खड्डों व नालों का उफान उसी जगह दे रहा आफत
ऊना,ब्यूरो रिपोर्ट
जिले की खड्डाें में बरसात के बीच बारिश से आने वाला उफान मानवीय जीवन पर भारी पड़ने लगा है। हर बरसात में खड्डें और नाले गिनी चुनी जगह आफत देती हैं, लेकिन व्यवस्था बार-बार इसके आगे ध्वस्त नजर आती है।
जिले में पहाड़ी क्षेत्र को छोड़ दें, तो मैदानी इलाकों में खड्डों सहित नालों में आया उफान कहर ढहा रहा है। इसका प्रमुख उदाहरण ऊना, बाथू बाथड़ी, पंडोगा, सलोह, भदसाली, हरोली आदि कई खड्डें और नाले हैं। दूसरी ओर गगरेट क्षेत्र के तहत भी काज-वे किसी आफत से कम नहीं है। यहां पर मूसलधार बारिश के बाद पानी का बहाव तबाही का मंजर छोड़ जाता है।
इसके पीछे एक प्रमुख कारण यह भी है कि न खड्डों और नालों के बहाव को सीमित करने के लिए बरसात से पूर्व कोई व्यापक अभियान नहीं छेड़ा जाता। हालांकि खड्डों, नालों सहित स्वां नदी के किनारे बैठे प्रवासी लोगों को आगाह कर वहां से हटने की रस्म अदायगी जरूर की जाती है, लेकिन बरसात के तीन माह को छोड़ भी दें, तो बाकी के नौ माह में इन खड्डों का निरीक्षण और प्रबंध करने के लिए कोई प्रभावी योजना सरकार व प्रशासन के पास नहीं है।बीती बरसातों में कई खड्डों के तटीकरण में क्षति पहुंची है और यहां से पानी निकल कर आबादी तक जलभराव का जख्म दे रहा है।
इसके लिए भी समय-समय पर कोई रखरखाव नजर नहीं आ रहा। अगर ऐसा होता तो यकीनन ही इस बरसात में उपरोक्त गांवों की खड्डों से निकला पानी रामपुर, होली खड्ड संतोषगढ़, सलोह, हूम खड्ड बाथू बाथड़ी आदि क्षेत्र जलभराव से आहत नजर न आते, जबकि बीती बरसातों में भी इन क्षेत्रों में उसी जगह जलभराव हुआ था, यहां इस बार। लेकिन राहत के लिए बीते वर्षों में यहां कुछ नहीं किया गया है।यकीनन ही यहां-वहां क्षति होती है। बाढ़ नियंत्रण विभाग इसकी जांच को पुख्ता करता है। कल्वर्ट पर पुल बनाने के लिए लोक निर्माण विभाग भी व्यवस्था बनाता है। आगामी व्यवस्थाओं को लेकर भी प्रशासन कृत संकल्प है।
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