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मौर्य वंश के पंच मार्क सिक्कों से होता था व्यापार

                                                         2200 साल पहले के मिले सिक्के

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

प्रदेश में मौर्य वंश के पंच मार्क सिक्कों से व्यापार होता रहा है। प्रदेश राज्य संग्रहालय में मुद्रा विज्ञान कार्यशाला में मुद्रा विज्ञानी अमितेश्वर झा और संग्राहालय अध्यक्ष हरि चौहान ने इस बात का खुलासा किया। 

उन्होंने कहा कि करीब 2200 साल पहले हिमाचल के कई हिस्सों में मौर्य काल के सिक्कों से सामान की खरीद-फरोख्त होती थी। सबसे पहले दस्तावेज में दर्ज सिक्कों की शुरुआत 4वीं और 3वीं शताब्दी ईसा पूर्व और पहली शताब्दी ईस्वी के बीच जारी किए गए पंच मार्क सिक्कों से हुई थी।इन सिक्कों को उनकी निर्माण तकनीक के कारण पंचमार्क सिक्के कहा जाता है। मुख्य रूप से चांदी और तांबे से बने पंचमार्क सिक्कों के प्रचलन ने मुद्रा का सबसे पारंपरिक रूप स्थापित किया। यह वर्गाकार, गोलाकार और आम तौर पर आयताकार होते थे। इन सिक्कों को पंच और डाई की मदद से ठोककर बनाया जाता था, ताकि इन पर प्रतीक चिन्ह बनाए जा सके।

मौर्य काल के इन सिक्कों को पंच मार्क कहा जाता है। इनकी आज के समय में कीमत अमूल्य है। प्रदेश में यह सिक्के सोलन जिला के अर्की, मंडी और कांगड़ा क्षेत्र में खोदाई के दौरान मिले हैं। इन्हें कड़ी सुरक्षा के बीच संग्रहालय में रखा गया है। ये सिक्के सम्राट अशोक के शासनकाल के दौरान ढाले गए थे। इन पर विभिन्न मूल्यवर्ग, वजन और प्रतीकों के निशान अंकित हैं। इन्हें आहत सिक्कों के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत के प्रारंभिक सिक्के हैं जिन्हें व्यापार में लेन देन के दौरान इस्तेमाल किया गया।हिमाचल प्रदेश राज्य संग्रहालय में करीब सात हजार सिक्कों का संग्रह है। इसमें पंच मार्केड सिक्के, मौर्य काल के सिक्के, उत्तर मौर्य काल के सिक्के, इंडो ग्रीक सिक्के, भारतीय पहलव सिक्के, कुषाण कालीन सिक्के, गुप्त कालीन सिक्के, शुंग कालीन सिक्के की कई किस्में शामिल हैं।

हिमाचल प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों के विभिन्न जनजातियों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सिक्के भी संग्रहालय में रखे हैं। सिक्का गैलरी को समृद्ध करने वाले अन्य सिक्के मुगलों, सिखों और इंडो-सासैनियन के शासन के दौरान के हैं।ऊना, चंबा, कांगड़ा, मंडी और हमीरपुर से मिले कुछ इंडो-ग्रीक सिक्के भी संग्रहालय में रखे हैं। इन सिक्कों पर शिलालेख हैं। इन सिक्कों पर अपोलोडोटस द्वितीय की राजसी छवि अंकित है। ये दूसरी ईसा पूर्व से पहली ईसा पूर्व के बीच के सिक्के हैं। इंडो-ग्रीक सिक्के तीन प्रकार के होते हैं। सिक्के के आगे वाले हिस्से पर उस शासक की प्रतिमा होती थी जिसके नाम पर इसे जारी किया गया था। पीछे की तरफ आमतौर पर किसी देवता की आकृति होती थी, जैसे ज़ीउस, अपोलो, पोसिडॉन सहित अन्य।





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