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फाइव डे वीक शुरू करने के मामले में कर्मचारी संगठनों में बहस छिड़ी

                                        हिमाचल में फाइव-डे वीक पर कर्मचारी संगठनों में छिड़ी बहस

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

हिमाचल प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों के लिए फाइव डे वीक शुरू करने के मामले में कर्मचारी संगठनों में बहस छिड़ गई है। कोई सप्ताह में पांच दिन कार्यदिवस रखने के पक्ष में है तो कोई इस पर सबकी राय जानने के बाद ही फैसला लेने की बात कर रहा है। 

हिमाचल प्रदेश सचिवालय सेवाएं कर्मचारी संगठन की ओर से इस मांग को उठाए जाने के बाद राज्य में इस संबंध में चर्चा का माहौल बना है।  प्रदेश अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ (प्रदीप गुट) के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर का कहना है कि महासंघ ने मुख्यमंत्री से कर्मचारियों की संयुक्त सलाहकार समिति (जेसीसी) की बैठक बुलाने की मांग की है। इसके लिए मुख्यमंत्री सुक्खू को एक मांग पत्र भी दिया गया है। इसमें भी इस मांग को शामिल किया गया है कि प्रदेश में कर्मचारियों के लिए फाइव डे वीक किया जाए। 

यह अन्य राज्यों की तर्ज पर किया जा सकता है। उन्हाेंने कहा कि इसके लिए कामकाज की व्यवस्था भी ठीक उसी तरीके से हो सकती है। मसलन जहां सरकारी कार्यालय दस बजे शुरू होते हैं, उनमें यह शुरुआत नौ बजे की जा सकती है। इसी तरह काम के घंटे भी कवर हो जाएंगे।अराजपत्रित कर्मचारी महासंघ (विनोद गुट) के अध्यक्ष विनोद कुमार ने इस संबंध में अलग राय रखते हैं !विनोद कुमार का कहना है कि इस बारे में सभी पक्षों को सुनने के बाद ही विचार करना होगा। केवल सचिवालय वाले के पक्ष को जानकर ही फैसला लेना उचित नहीं है। इसके लिए कर्मचारियों के सभी पक्षों को सुना जाना चाहिए। अगर प्रदेश में सुबह और शाम का समय बढ़ाकर फाइव-डे वीक किया जाता है तो इसमें यह देखना होगा कि क्या यह सभी कर्मचारियों के लिए उपयुक्त है कि नहीं। 

प्रदेश में सर्दियों में जब दिन छोटे होते हैं तो कर्मचारी न तो सुबह जल्दी तैयार हो पाते हैं और न ही शाम के वक्त ही जल्दी घर पहुंच पाते हैं। कर्मचारी महासंघ (त्रिलोक गुट) के अध्यक्ष त्रिलोक ठाकुर ने कहा कि वह इससे सहमति रखते हैं। सरकारी खर्च कम होगा। अफसरों की गाड़ियां कम चलेंगी। दफ्तरों में भी कम खर्च होगा। अन्य दिनों में काम की अवधि को पूरा कर लिया जाएगा। इस संबंध में सरकार को विचार करना चाहिए। सचिवालय सेवाएं कर्मचारी संगठन के अध्यक्ष संजीव शर्मा की अध्यक्षता में मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना से मिले कर्मचारी नेताओं ने यह मांग उठाई थी। इसके लिए सरकारी गाड़ियों का खर्चा घटाने और अन्य व्यय घटाने के तर्क दिए थे। 





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