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अर्ली वार्निंग सिस्टम से बाढ़ के संभावित खतरे को शानन प्रोजेक्ट भांपेगा

    करीब एक करोड़ से अधिक की धनराशि अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित करने के लिए खर्च की जाएगी

मंडी,ब्यूरो रिपोर्ट 

चौहारघाटी में अब अर्ली वार्निंग सिस्टम से बाढ़ के संभावित खतरे को शानन प्रोजेक्ट भांपेगा। इसके लिए बरोट स्थित शानन परियोजना से 20 किलोमीटर दूर बड़ा गांव के गड़सा ब्रिज के समीप आधुनिक अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित होगा। वहीं, लंबाडग नदी की भी मॉनिटरिंग के लिए लोहारडी में इसी तकनीक के आधुनिक सेंसर स्थापित होंगे। करीब एक करोड़ से अधिक की धनराशि अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित करने के लिए खर्च की जाएगी।

प्राकृतिक आपदा से किसी भी प्रकार का जानी नुकसान न हो, इसके लिए पहली बार चौहारघाटी में इस आधुनिक तकनीक को अपनाया जा रहा है। इसके स्थापित होने के बाद समूचे बरोट वैली में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा के संभावित खतरे पर पहले ही खतरे की घंटी बजना शुरू हो जाएगी। 1928 के दशक में बनी शानन प्रोजेक्ट की बरोट स्थित उहल परियोजना की पुरानी और नई रेजरवायर में जब अचानक जलस्तर बढ़ जाता है तो बरोट वैली में बाढ़ जैसे हालात बन जाते हैं।अब अर्ली वार्निंग सिस्टम से बाढ़ के संभावित खतरे को भांपने के लिए केंद्रीय उर्जा मंत्रालय के आदेशों की पालना करते हुए पंजाब राज्य विद्युत बोर्ड ने इसकी औपचारिकताएं पूरी कर इसे धरातल में उतारने की कवायद भी शुरू कर दी है। 

बीते दो माह पहले मंडी कांगड़ा सीमा पर चौहार घाटी में ही स्थापित 25 मेगावाट लंबाडग की अचानक प्रोजेक्ट की टनल में रिसाव से मुल्थान बाजार में बाढ़ जैसे हालात बन गए थे।उधर, शानन प्रोजेक्ट के आरई सतीश कुमार ने बताया कि चौहारघाटी में अर्ली वार्निंग सिस्टम स्थापित होने के बाद बरोट स्थित कंट्रोल रूम में जैसे ही खतरे की घंटी बजेगी तभी बड़ागांव से टिक्कन तक हुटर बजना शुरू हो जाएंगे। सैटेलाइट के माध्यम से भी बाढ़ व प्राकृतिक आपदा के संभावित खतरे को भांपने में आसानी मिलेगी।





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