पौंग झील किनारे पक्षियों के आग की चपेट में आने की आशंका
काँगड़ा,ब्यूरो रिपोर्ट
पौंग झील किनारे पहले गेहूं की अवैध खेती की और फिर उसकी कंबाइन से कटाई की और बाद में गेहूं के बचे भूसे को आग लगा दी। इससे पौंग झील की इस खाली जमीन में अपना बसेरा बनाकर रह रहे स्थानीय पक्षियों के अंडे और बच्चे भी चपेट में आने की आशंका जताई जा रही है। इस घटना के अंजाम से ऐसा लगता है कि राज्य वन विभाग की वन्यजीव शाखा ने पौंग झील पर अपना नियंत्रण छोड़ दिया है। यहां गेहूं के बचे हुए भूसे में आग लगाने से उठने वाले धुएं से पूरा क्षेत्र इसके आगोश में है।
पर्यावरणविद मिल्खी राम शर्मा ने इस मामले को उच्चतम स्तर तक उठाने का साहस दिखाया है। उन्होंने कहा कि “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 के अनुसार, 2002 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश, 2018 की वेटलैंड अधिसूचना में कहा गया है कि इस क्षेत्र में कोई भी गैर-वानिकी गतिविधि नहीं हो सकती है। चूंकि विभाग ने इन उल्लंघनों के लिए अपनी मौन सहमति दे दी। हमारे पास ग्रीन ट्रिब्यूनल में मामला दर्ज कराने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।डीएफओ वाइल्डलाइफ रेजिनाल्ड रॉयस्टन ने कहा कि आग लगाने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के निर्देश संबंधित अधिकारियों को दिए गए हैं। रॉयस्टन के अनुसार एफआईआर दर्ज कर ली गई है और मामले की सूचना एसपी कांगड़ा को दे दी गई है।
बारिश के मौसम में पौंग झील का पानी लबालब भर जाता है और फिर घटने लगता है। इससे आर्द्रभूमि का निर्माण होता है जो पक्षियों के सबसे बड़े और सबसे कठिन प्रवास की मेजबानी करता है।ये पक्षी तिब्बत, मंगोलिया और यहां तक कि साइबेरिया से भी आते हैं। इस क्षेत्र को पक्षी अभयारण्य, पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र और रामसर आर्द्रभूमि घोषित किया गया है। राज्य वन विभाग के वन्यजीव विंग की सीधी निगरानी में में यह एक संरक्षित स्थान है लेकिन पौंग झील की परिधि में रहने वाले लोग खाली जमीन पर खेती करते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि घोंसले बनाने और बसने की जगह जहां पक्षी अंडे देते हैं, वे परेशान हो जाते हैं।
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