खुंब निदेशालय का पांच साल का सफल शोध अब कमरे में भी तैयार हो सकेगा
सोलन , ब्यूरो रिपोर्ट
अब बंद कमरे में भी गुच्छी बनाया जा सकेगा, जो अधिक ऊंचाई वाले जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगती है। पिछले पांच वर्षों में खुंब अनुसंधान निदेशालय (डीएमआर) ने किए गए शोध सफल रहे हैं। इस वर्ष निदेशालय ने दूसरा सफल शोध किया है। गुणवत्ता भी कमरे में उगाई गई और प्राकृतिक गुच्छी की समान है।
वहीं, नवीनतम अध्ययन ने गुच्छी (मोर्केला) की बंपर फसल पाई है। जानकारी के अनुसार, गुच्छी प्राकृतिक रूप से जंगलों में उगती है। गुच्छी के प्रति किलो मूल्य लगभग 25 से 30 हजार रुपये है। गुच्छी भी निर्यात होता है। डीएमआर के विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार ने बताया कि गुच्छी अभी तक प्रदेश में लगभग साढ़े छह हजार फुट से अधिक की ऊंचाई पर कायल, देवदार और अन्य जंगलों में प्राकृतिक रूप से उगती है।
आज, ग्रामीणों ने प्रदेश के ऊंचाई वाले इलाकों में उगने वाली गुच्छी एकत्र करके इसे बेचकर अपनी वित्तीय स्थिति मजबूत की है। यह खेतों में उगाना असंभव था क्योंकि इसका बीज विकसित नहीं हुआ था। लेकिन अब डीएमआर इसमें सफल है। विटामिन डी, सी, के, आयरन, कॉपर, जिंक और फॉस्फोरस को बीमारियों से लड़ने में गुच्छी में बहुतायत मिलती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका सेवन थायराइड, गठिया, मानसिक तनाव और बोन स्वास्थ्य को कम करने में मदद करता है। यह भी दिल के रोगों और शरीर की चोट को जल्द भरने में मदद करता है। 2019 से, खुंब अनुसंधान निदेशालय ने गुच्छी पर शोध शुरू किया, जो इंडोर में बहुत सफल रहा था। पहले वर्ष शोध में बहुत सफलता नहीं मिली। लेकिन 2020 से खोज में सफलता मिलनी शुरू हो गई थी। इसके बाद, गुच्छी की फसल इस बार भी अच्छी आई है, क्योंकि अब सफल शोध भी हुआ है। सफलता के लिए वैज्ञानिकों को भी बधाई दी जानी चाहिए। डॉ. वीपी शर्मा, सोलन के निदेशक, मशरूम अनुसंधान निदेशालय ।
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