केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने छह साल बाद सीपीआरआई को फिर से आलू का बीज बनाने की अनुमति दी।
शिमला , ब्यूरो रिपोर्ट
देश के पहाड़ी राज्यों के किसानों को राहत मिली है। छह साल बाद, केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान (सीपीआरआई) फिर से आलू का बीज बनाएगा। 2018 में सिस्ट नेमाटोड रोग के कारण हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर में कुफरी और फागू फार्मों में आलू के बीज उत्पादन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
देश में आलू उत्पादन भी खराब बीज से प्रभावित हुआ। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने भी सीपीआरआई को रोग उपचार का काम सौंपा है। संस्थान ने व्यापक परीक्षणों के बाद उपचार खोजा है। अब कृषि मंत्रालय ने सीपीआरआई को आलू बीज बनाने की मंजूरी मिलने के बाद स्वीकृति दी है।
वीरवार को एक प्रेसवार्ता में सीपीआरआई के निदेशक ब्रजेश सिंह ने यह जानकारी दी। उन्होंने बताया कि इसी साल सीपीआरआई उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश और कुफरी ज्योति, कुफरी गिरधारी, कुफरी हिमालनी और कुफरी करण जैसे आलू की किस्मों का बीज देगा। डॉ. अश्वनी शर्मा, फागू फार्म के प्रबंधक, ने बताया कि बीज तैयार करने की प्रक्रिया अप्रैल के अंत तक शुरू हो जाएगी।
बफर सीड स्टॉक तैयार है। 5 हेक्टेयर पर 800 से 1000 क्विंटल आलू तैयार होगा, जिसमें से नवंबर से 700 क्विंटल बीज राज्यों को देंगे। संस्थान के सामाजिक विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डा. आलोक कुमार, डा. जगदेव शर्मा, डा. दिनेश, डा. अश्वनी कुमार शर्मा और डा. विनोद कुमार भी इस मौके पर उपस्थित थे। सीपीआरआई के डॉ. संजीव शर्मा और डा. आरती बैरवा ने बताया कि सिस्ट नेमाटोड के उपचार में मिथाइल ब्रोमाइड का प्रयोग 50 प्रतिशत तक कामयाब रहा था।
फिर सोडियम हाइपोक्लोराइट की मदद से परीक्षण किए गए, जो उपचार के लिए सर्वश्रेष्ठ निकला। नियमों के अनुसार, आलू बीज को खुदाई के बाद दो बार पानी से धोकर छाया वाले स्थान में सुखाने के बाद भंडारण किया जा सकता है. इसके बाद, सोडियम हाइपोक्लोराइट को एक प्रकार का ब्लीचिंग एजेंट के घोल में 30 मिनट तक डुबोकर रखना चाहिए। यह आलू बीज की गुणवत्ता या अंकुरण क्षमता पर कोई बुरा प्रभाव नहीं डालता। घोल को तीस मिनट तक बारह बार इस्तेमाल कर सकते हैं।
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