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भाखड़ा बांध के विस्थापितों के लिए 63 साल बाद भी मालिकाना हक अधूरा

                                        63 वर्ष बाद भी भाखड़ा बांध के विस्थापितों को मालिकाना हक नहीं मिला

बिलासपुर , ब्यूरो रिपोर्ट 

भाखड़ा बांध से बनने वाली गोबिंद सागर झील से बेघर हुए बिलासपुर के 205 गांवों के लोग आज भी राहत की उम्मीद कर रहे हैं। 63 वर्ष बीत जाने के बावजूद लोगों को मूलभूत सुविधाओं से वंचित किया गया है। सुविधाओं के नाम पर लोगों को सिर्फ कोरी आशा मिली।


 विधानसभा और लोकसभा चुनावों के दौरान नेताओं को विस्थापितों की याद आती है और उनका हक दिलाने का दावा किया जाता है। सत्ता में आने पर विस्थापित भुला दिए जाते हैं। विस्थापितों का पूरा बसाव आज भी नहीं हो पाया है। 9 अगस्त 1961 को झील बनने से पहले घर-जमीन छोड़ने वाले लोग आज भी न्याय के लिए भटक रहे हैं।


 बिलासपुर, देश का पहला शहर है जो 999 साल की लीज पर है क्योंकि यह विस्थापितों से बसा है। इन्हें शहर में अपनी संपत्ति का मालिकाना हक नहीं मिला, सब कुछ होते हुए भी। बिजली-पानी के कनेक्शन के लिए लीज के कारण नगर परिषद से एनओसी लेना पड़ता है। जरूरत पड़ने पर अपनी संपत्ति पर लोन के लिए अनुमति चाहिए।


 करीब 41,000 एकड़ क्षेत्रफल वाली झील ने 11,777 परिवारों को बेघर कर दिया। उनके लिए कोई नीति केंद्र-प्रदेश सरकार ने नहीं बनाई है। 3600 परिवारों को हरियाणा के सिरसा, हिसार और फरीदाबाद में जमीन दी गई, क्योंकि कुछ लोग आसपास के जंगलों में बस गए। कुछ विस्थापितों को विस्थापन के बारह वर्ष बाद 1973 में जमीन दी गई। लोगों ने निशानदेही के अभाव में आशियाने बनाए, लेकिन जमीन कहीं और पर थी। 


इसलिए लोग फिर से विस्थापित हो गए। उसकी जमीन को अवैध घोषित करने के बाद, जिले में लगभग 450 लोगों के बिजली-पानी के कनेक्शन काटे गए हैं। शहर में भी लगभग 246 लोगों को जमीन नहीं मिली। इन व्यक्तियों को प्लॉट के लिए जमीन तक चिह्नित नहीं किया गया है। विस्थापितों को प्लॉट देने के लिए जगह भी प्रशासन ने चिह्नित नहीं की है। 

 2011 में, भाखड़ा विस्थापितों के अवैध कब्जों को नियंत्रित करने के लिए 150 मीटर की पॉलिसी लागू की गई। इसके तहत अनुरोध किया गया था। शुरू में लगभग 2200 आवेदन प्राप्त हुए थे, लेकिन इनमें से लगभग 1800 को ही योग्य पाया गया था। बाद में शर्त के अनुसार नियमित करना शुरू किया गया, लेकिन अभी तक 100 तक नहीं पहुंच पाया है।

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