हिमाचल प्रदेश में 57 औषधीय पौधों पर भी खतरा है, जिससे जैव विविधता और पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली भी प्रभावित हैं।
शिमला, ब्यूरो रिपोर्ट
कई औषधीय पौधों की प्रजातियां शहरीकरण से विस्थापित हो रही हैं। कृषि विस्तार, अक्सर नकदी फसलों की मांग से प्रेरित, इन पारिस्थितिक तंत्रों को खराब करता है। प्रदेश में 57 जंगली औषधीय पौधों की प्रजातियां खतरे में हैं। हिमाचल प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड की एक रिपोर्ट ने यह जानकारी दी है।
जंगली प्रजातियों के खतरे में पड़ने से क्षेत्र की पारंपरिक स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली और जैव विविधता भी खतरे में हैं। वनस्पति संसाधनों की मूल्यवान क्षति में शहरीकरण, कृषि विस्तार और जलवायु परिवर्तन भी शामिल हैं। कई औषधीय पौधों की प्रजातियां शहरीकरण से विस्थापित हो रही हैं। कृषि विस्तार, अक्सर नकदी फसलों की मांग से प्रेरित, इन पारिस्थितिक तंत्रों को खराब करता है।
इससे जैव विविधता का नुकसान होता है और पारंपरिक चिकित्सा के लिए आवश्यक औषधीय पौधों का भंडार कम होता है। विशेष औषधीय पौधों की वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण वर्षा पैटर्न और तापमान में बदलाव के कारण जलवायु परिवर्तन ने इस समस्या को बढ़ा दिया है। इनमें से कई प्रजातियां विशेष ऊंचाई और जलवायु के अनुकूल हैं, जिससे वे छोटे-छोटे पर्यावरणीय बदलावों के प्रति बहुत संवेदनशील हैं। व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए अधिक कटाई एक अतिरिक्त खतरा है। हर्बल दवाओं की बढ़ती मांग, पारंपरिक रिवाजों और प्राकृतिक उपचारों में वैश्विक रुचि के कारण जंगली आबादी पर भारी दबाव डालती है।
इन पौधों की कमी अनियमित जंगलों की कटाई से हो सकती है। स्थानीय तंत्र प्रभावित हो सकता है। और दवाओं की स्थिरता को खतरा हो सकता है। हिमाचल प्रदेश राज्य जैव विविधता बोर्ड ने बताया कि जंगली क्षेत्रों में पाए जाने वाले मोहरा, अटीस, मीठा तेलिया, चोरा, रतनजोत, झरका, कशमल, भोज, काला जीरा, तेजपत्ता, सुरंजन कड़वी, सलाम पंजा, सलपरनी, पत्थर लौंग, शिंगली मिंगली, सोमलता, ककोली, कुकटी, जीवक, रिशबक और खुरायनी अजवायन इनमें बसंत, जुफ्फा, हुबर, धूप, क्षीर ककोरी, वृधी, रिधी, जटामंशी, गौजवान, ततपलंगा, दुधिया बाच, करू, सलाम मिश्री, रेवंद चीनी, ब्रह्म कमल, भूटकेसी, नेर धूप, चौरत्य, लोध, बिरमी, प्रश्नपरणी और टिमरू शामिल हैं।
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