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प्रदेश में तापमान बढ़ने के कारण हर साल 57 मीटर खिसक रहा है सेब का दायरा

                                               ग्लोबल वार्मिंग का असर सेब उत्पादन पर भी पड़ा है

शिमला,ब्यूरो रिपोर्ट 

ग्लोबल वार्मिंग का असर सेब उत्पादन पर भी पड़ा है। पर्यावरण असंतुलन से तापमान बढ़ गया है। नतीजतन, सेब उत्पादन का दायरा भी हिमालय की तरफ खिसकने लगा है। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान के शोध में यह खुलासा हुआ है। संस्थान के वैज्ञानिकों के मुताबिक हर साल सेब उत्पादन बेल्ट 57 मीटर पीछे यानी हिमालय की तरफ खिसक रही है। 

पर्यावरण असंतुलन से बारिश और बर्फबारी का चक्र बिगड़ गया है। हिमालय के नजदीकी क्षेत्रों में भी जाड़ों में सीमित बर्फबारी होने से तापमान में बढ़ोतरी हो रही है जो सेब उत्पादन के लिए गहरी चिंता का विषय है। जीबी पंत राष्ट्रीय हिमालय पर्यावरण संस्थान कोसी, अल्मोड़ा के वैज्ञानिकों के शोध में सेब उत्पादन को लेकर चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक 35 साल में किए गए शोध के अनुसार सेब उत्पादन के लिए प्रसिद्ध हिमाचल, उत्तराखंड और कश्मीर में मौसम चक्र बिगड़ने से न्यूनतम तापमान में तीन से पांच डिग्री की बढ़ोतरी हुई है। उपयुक्त तापमान न मिलने से इन राज्यों में अब तक सेब का दायरा 2000 मीटर पीछे खिसक गया है। यानि पूर्व में जिन स्थानों पर सेब उत्पादन के लिए मौसम अनुकूल था अब वहां इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक सेब के बेहतर उत्पादन के लिए पेड़ों को कम से कम 1200 घंटे तक छह डिग्री तापमान की जरूरत होती है। जाड़ों में हिमालयी राज्यों में भी बर्फबारी बेहद कम हो रही है। इससे न्यूनतम तापमान में वृद्धि हुई है। ऐसे में सेब को पर्याप्त चिलिंग ऑवर नहीं मिल रहा और इसका दायरा हिमालय की तरफ खिसकता चला जा रहा है।चौबटिया उद्यान के सेवानिवृत्त पौध रक्षा अधिकारी डॉ. चारु चंद्र पंत ने कहा कि सेब बेल्ट हर साल खिसक रही है जो चिंताजनक है। बताया कि एक दशक में पर्याप्त बर्फबारी न होने से पूरे देश में सेब का उत्पादन भी प्रभावित हुआ है। इसमें 20 से 25 प्रतिशत तक की गिरावट आई है। बताया कि सेब की कुछ नई प्रजातियां विकसित हुई हैं जो भविष्य में इसके सिमटते दायरे को कम कर सकती हैं।




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