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शक्तिपीठ बज्रेश्वरी मंदिर के विश्व विख्यात घृतमंडल पर्व को लेकर मंदिर प्रशासन ने की तैयारियां शुरू

                                                        घृतमंडल के लिए 21 क्विंटल घी से बनेगा मक्खन

काँगड़ा,रिपोर्ट नेहा धीमान 

शक्तिपीठ बज्रेश्वरी मंदिर के विश्व विख्यात घृतमंडल पर्व को लेकर मंदिर प्रशासन ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। मकर संक्रांति पर शुरू होने जा रहे इस पर्व को लेकर सोमवार को एसडीएम सौमिल गौतम की अध्यक्षता में बैठक हुई। 14 जनवरी से शुरू होने जा रहे इस पर्व को लेकर एसडीएम ने श्रद्धालुओं की सुविधाओं को लेकर समीक्षा की। मकर संक्रांति की रात को मंदिर में जागरण होगा। साथ ही माता की पिंडी पर मक्खन चढ़ाने की प्रक्रिया शुरू होगी।

एसडीएम ने कहा कि मंदिर में होने वाले जागरण और सजावट करवाने के इच्छुक श्रद्धालु मंदिर प्रशासन से संपर्क कर सकते हैं। जागरण के लिए स्थानीय कलाकारों को प्राथमिकता दी जाएगी। पर्व के दौरान श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होने के चलते पुलिस प्रशासन की ओर से अतिरिक्त सुरक्षा मुहैया करवाने के निर्देश दिए गए। वहीं, स्वास्थ्य विभाग को भी मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कैंप लगाने के निर्देश दिए। उन्होंने कहा कि इस वर्ष मक्खन बनाने के लिए 21 क्विंटल घी का इस्तेमाल किया जाएगा। घी से मक्खन बनाने के लिए पूर्व में निर्धारित मानदेय इस वर्ष भी दिया जाएगा। मक्खन चढ़ाने और मक्खन उतारने की प्रक्रिया को व्यवस्थित तरीके से किया जाएगा। पर्व के दौरान सफाई, लंगर, पेयजल, यात्रियों के ठहरने सहित बिजली और सीवरेज व्यवस्था को समय पर दुरुस्त करने के निर्देश दिए। बैठक में मंदिर अधिकारी नीलम कुमारी, तहसीलदार मोहित रतन, एसएचओ संजीव कुमार, सहायक अभियंता विजय कुमार आदि मौजूद रहे।

ऐसी मान्यता है कि जालंधर दैत्य से युद्ध करते हुए मां बज्रेशवरी को की चोटें आईं थीं। इस दौरान देवताओं ने मक्खन से लेप किया था। इसी परंपरा को मंदिर के पुजारी निभाते आ रहे हैं। परंपरा के अनुसार देसी घी को 101 बार शीतल जल से धोकर मक्खन तैयार किया जाता है। इसको मां की पिंडी पर लगाया जाता है। उसे फल और मेवों से सजाया जाता है।घृत मंडल का यह पर्व सात दिन तक चलता है। सातवें दिन माता की पिंडी से मक्खन उतारने की प्रक्रिया शुरू होती है। बज्रेश्वरी मंदिर में आयोजित होने वाला यह पर्व पूरे देश से भिन्न होता है। सातवें दिन जब माता की पिंडी से मक्खन उतारा जाता है और जब इसे प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं में बांटा जाता है तो इस प्रसाद को खाया नहीं जाता है। ऐसा मान्यता है कि चरम रोगों के लिए यह प्रसाद रामबाण का काम करता है।




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