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हवा के रुख से अंजान पैराग्लाइडर पायलटों की जा रही जान

                      पायलटों के पास भले ही पैराग्लाइडर के सहारे हवा में उड़ने का अनुभव होता है

काँगड़ा,रिपोर्ट नेहा धीमान 

जिला कांगड़ा की विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग साइट बीड़ बिलिंग में देश-विदेश से हर वर्ष सैकड़ों पैराग्लाइडर पायलट पहुंचते हैं। यहां हर साल अंतरराष्ट्रीय स्तर के मुकाबले होते हैं। लेकिन, आसमान में उड़ान भरने के दौरान पल-पल बदलते हवा के रुख से अंजान होने से कई विदेशी पैराग्लाइडर पायलट हादसे का शिकार हो जाते हैं।

वहीं समय पर रेस्क्यू अभियान शुरू न होने और अत्याधुनिक उपकरण न होने से कई पायलट काल का ग्रास बन चुके हैं। यही कारण है कि पिछले आठ दिन से एनडीआरएफ और रेस्क्यू टीमें लापता पोलैंड के पायलट का रेस्क्यू करने में नाकाम रही हैं। भले ही इन पायलटों के पास पैराग्लाइडर के सहारे हवा में उड़ने का अनुभव होता है, लेकिन पल-पल बदलती हवाओं का रुख नहीं समझ पाते। इसलिए क्रैश लैंडिंग का शिकार हो जाते हैं।पिछले नौ दिनों से पौलेंड के पायलट कुलाविक को रेस्क्यू नहीं किया जा सका है।

 हालांकि कयास लगाए जा रहे हैं कि उसकी मौत हो चुकी होगी, क्योंकि जहां पर उसका पैराग्लाइडर देखा गया है, वह 700 से 800 मीटर गहरी खाई है। कुलाविक को रेस्क्यू करने के लिए वायुसेना के हेलिकाप्टरों की भी मदद ली गई, लेकिन गहराई होने के कारण वह भी उसे लिफ्ट नहीं कर सके। वहीं अब जिला प्रशासन ने भारतीय सेना से संपर्क कर विशेषज्ञों की मदद मांगी है।  बीड़ बिलिंग से पैराग्लाइडिंग करते हुए  जितने भी विदेशी पायलट काल का ग्रास बने हैं, उनमें अनुभव की कमी नहीं थी। लेकिन  यहां की परिस्थितियों से अनभिज्ञ हैं। वह ऊंचाई पर तो चले जाते हैं, लेकिन कई स्थानों पर जरूरी थर्मल न मिल पाने के कारण पैराग्लाडर से नियंत्रण खो बैठते हैं। रेस्क्यू टीमों के पास ऐसे अत्याधुनिक उपकरण नहीं हैं, जो किसी दुर्घटनाग्रस्त पायलट को तुरंत मदद मुहैया करवा सकें।




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