सिर्फ तीन नमूनों में मिला कीड़ों का प्रकोप
शिमला,रिपोर्ट नीरज डोगरा
मृदा-संचारित कृमि या हेल्मिन्थ्स बच्चों को संक्रमित करने वाला एक कृमि या कीट है, जो दूषित मृदा के माध्यम से प्रेषित व संचारित होता है। आंतों के ये कीड़े परजीवी के रूप में मानव आंत में रहते हैं।अच्छी सामाजिक, आर्थिक स्थिति और स्वच्छता ने हिमाचल प्रदेश में बच्चों में मृदाजनित कृमियों का प्रकोप घटा दिया है। राज्य में बच्चों के स्टूल के 942 नमूने लिए गए, जिनमें से केवल तीन में ही मिट्टी से उत्पन्न कीड़ों का प्रकोप पाया गया। यह खुलासा केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से करवाए गए अध्ययन में हुआ है।
कृमि संक्रमण पोषण ग्रहण करने में बाधा डालता है, जिसके कारण अनीमिया और कुपोषण हो सकता है और मानसिक एवं शारीरिक विकास बाधित हो सकता है। इस अध्ययन को पीजीआई चंडीगढ़ समेत कई प्रतिष्ठित संस्थानों ने स्कूल नहीं जाने वाले, स्कूली बच्चों और किशोरों पर किया। हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों में अध्ययन किया गया। छत्तीसगढ़ में 3033 बच्चों के स्टूल सैंपल लिए गए। 942 नमूने हिमाचल प्रदेश में लिए गए।छत्तीसगढ़ की स्थिति भी अच्छी पाई गई है। स्कूली स्तर पर डिवॉर्मिंग की भी बड़ी भूमिका रही है। बच्चों को समय-समय पर कीड़े मारने की दवा खिलाई जाती रहती है। इससे भी पेट के यह कृमि कर जाते हैं। बच्चों को केवल साफ-सुथरे शौचालय में शौच करवाकर भी इससे बचाव हो सकता है। खुले में शौच करना भी इसका एक कारण रहता आया है।
मृदा-संचारित कृमि या हेल्मिन्थ्स बच्चों को संक्रमित करने वाला एक कृमि या कीट है, जो दूषित मृदा के माध्यम से प्रेषित व संचारित होता है। आंतों के ये कीड़े परजीवी के रूप में मानव आंत में रहते हैं। ये बच्चे के पेट से ही आवश्यक पोषक तत्वों और विटामिन खा लेते हैं।ये कृमि संक्रमित लोगों के मल से फैलते हैं। जिन क्षेत्रों में स्वच्छता नहीं होती है, उस स्थान पर ये अंडे मृदा को दूषित कर लेते हैं। इससे बच्चे के शरीर में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इससे एनीमिया कम हीमोग्लोबिन जैसे विकार पैदा हो जाते हैं। इससे पेचिश और दस्त भी आदि भी लगते हैं। बच्चों की भूख कम हो जाती है।यह अध्ययन पीजीआई चंडीगढ़ के डॉ. राकेश, स्वास्थ्य मंत्रालय में नियुक्त अजय खेड़ा, इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के चेन्नई स्थित संस्थान के डॉ. मनोज मुहरेकर, कोलकाता स्थित संस्थान के डॉ. संदीपन गांगुली, डॉ. हरगोविंद्र कौर आदि कई संस्थानों के विशेषज्ञों ने किया।
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