परवाणू से सोलन तक नेशनल हाईवे को 66 करोड़ का नुकसान
सोलन,ब्यूरो रिपोर्ट
फोरलेन निर्माण कर रही कंपनी की ओर से पहली रिपोर्ट बनाकर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एचएचएआई) के कार्यालय में भेज दी है। अब दूसरी रिपोर्ट की गणना फोरलेन निर्माण कर रही कंपनी कर रही है। कालका-शिमला नेशनल हाईवे-पांच पर परवाणू से सोलन तक बरसात में करीब 66 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। हाल ही में फोरलेन निर्माण कर रही कंपनी की ओर से पहली रिपोर्ट बनाकर राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एचएचएआई) के कार्यालय में भेज दी है। अब दूसरी रिपोर्ट की गणना फोरलेन निर्माण कर रही कंपनी कर रही है।
बताया जा रहा है कि दोनों रिपोर्ट आने के बाद यह मंत्रालय को भेजी जाएगी। अभी भी कई जगह पर सूखे में ही पहाड़ियां दरक रही हैं, साथ ही सड़क के धंसने और ढहने के मामले भी आ रहे हैं। इससे लगातार नुकसान अभी भी होता जा रहा है। इस प्रकार के नुकसान का ब्योरा दूसरी रिपोर्ट में कंपनी की ओर से एनएचएआई को भेजा जाएगा।गौर रहे कि कालका-शिमला नेशनल हाईवे-पांच पर बरसात से पहले फोरलेन निर्माण कर रही कंपनी की ओर से लगभग 95 फीसदी कार्य पूरा कर लिया गया था। इसके बाद जुलाई में बरसात का सिलसिला शुरू हुआ और पहाड़ दरक गए। ऐसे में सड़क पर एकतरफा आवाजाही चली। डंगे टूट गए और कई जगहों पर सड़क पर पत्थर गिरने से काफी नुकसान हुआ। वहीं कई जगहों पर सड़क भी धंस गई। वहीं जाबली और सनवारा के समीप भी सड़क का एक हिस्सा पूरी तरह से ढह गया।चक्कीमोड़ में सड़क पूरी तरह से बंद हो गई और यहां पर लगे डंगों आदि को काफी नुकसान पहुंचा। इसके बाद फोरलेन निर्माण कर रही कंपनी की ओर से नुकसान का आकलन किया गया। अब परवाणू से सोलन के बीच क्षतिग्रस्त क्षेत्रों में निर्माण कार्य भी शुरू हो गया है। जिसे कंपनी की ओर से जल्द पूरा करने का दावा किया गया है।
कंपनी के एक अधिकारी ने बताया कि बरसात के दौरान हुए नुकसान की पहली रिपोर्ट तैयार कर एनएचएआई को भेज दी है। इसमें 66 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। सूखे में भी मलबा और पत्थर सड़क पर आ रहे हैं। इससे भी नुकसान हो रहा है जल्द दूसरी रिपोर्ट भी तैयार कर ली जाएगी।हाईवे पर सनवारा टोल प्लाजा के पास कुछ दिनों पहले एएए होटल के पास सड़क पूरी तरह से ढह गई। इस कारण यहां पर एकतरफा आवाजाही चली हुई है। हाईवे पर तीन जगह ऐेसी हैं जहां पर एक तरफ से वाहन चल रहे हैं। धूप खिलने के बाद सड़क पर यही हाल बना हुआ है। पहाड़ियां कब दरक जाएं, इसका पता नहीं चल पा रहा है।
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