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कृषि विश्वविद्यालय के प्रयासों से काला जीरा उत्पादक संघ को पादप जीनोम संरक्षक समुदाय पुरस्कार

                                                    काला जीरा हालांकि व्यापक रूप से जंगलों में उगाया जाता है

पालमपुर,रिपोर्ट प्रवीण शर्मा 

 किन्नौर जिले के शोंग गांव के काला जीरा उत्पादक संघ को 10 लाख रुपये का प्रतिष्ठित पादप जीनोम संरक्षक समुदाय पुरस्कार मिलेगा।  चौधरी  सरवन कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर एच.के. चौधरी ने इस जानकारी को साझा करते हुए बताया कि यह कृषि विश्वविद्यालय की पहल थी जिसने किसानों को काला जीरा उत्पादन संघ (केजेडयूएस) बनाने में सहायता की, वैज्ञानिक रूप से फसल के लक्षणों का दस्तावेजीकरण किया और पुरस्कार के लिए आवेदन करवाया। इस सामुदायिक पुरस्कार के लिए पिछले वर्ष जून में आवेदन किया गया था।

उन्होंने बताया कि अब विश्वविद्यालय को पौधों की विविधता और किसान अधिकार प्राधिकरण (पीपीवीएफआरए) के रजिस्ट्रार ने प्रतिष्ठित पादप जीनोम संरक्षक समुदाय पुरस्कार के लिए उत्पादक संघ  को चयन के बारे में सूचित किया। केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा 12 सितंबर को केजेडयूएस के समक्ष प्रशस्ति पत्र सहित 10 लाख रु. प्रदान किए जाएगें।

प्रोफेसर चौधरी ने कहा कि पौधों की किस्मों के संरक्षण और विकास में किसानों के महत्वपूर्ण योगदान को स्वीकार करने के लिए यह भारत का प्रतिष्ठित पुरस्कार है।कुलपति ने बताया कि सांगला (किन्नौर) में विश्वविद्यालय के अनुसंधान केंद्र को ‘काला जीरा और केसर पर मॉडल फार्म‘ के रूप में नामित किया गया है। यह एक औषधीय फसल के रूप में काला जीरा की वैज्ञानिक खेती, सुधार और लोकप्रियकरण के लिए काम कर रहा है। काला जीरा हालांकि व्यापक रूप से जंगलों में उगाया जाता है, लेकिन इसे अब खेती करते हुए प्रमुखता से तैयार किया जा रहा है। वर्तमान में किन्नौर जिले के शोंग गांव में लगभग 47 हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती की जा रही है। इस फसल में शुद्ध, सुगंधित, वातनाशक के साथ-साथ औषधीय गुण जैसे उत्तेजक, कफ निस्सारक, ऐंठन रोधी और मूत्रवर्धक गुण होते हैं। बीज में आवश्यक तेल जैसे टेरपेनोइड्स, फेनिलप्रोपानोइड्स, पॉलीन आदि में एंटीऑक्सीडेंट, एंटीफंगल और जीवाणुरोधी गुण होते हैं। काला जीरा की बाजार में अधिक कीमत है और यह ‘वोकल फाॅर लोकल ‘ आंदोलन का एक उदाहरण है। वन क्षेत्र से अपरिपक्व बीजों के संग्रह और इस मसाले के अस्थिर और अवैज्ञानिक दोहन के परिणामस्वरूप इसकी प्राकृतिक आबादी में कमी आई है और इसने इसे उत्तर-पश्चिमी हिमालय में विशेष संरक्षण का पौधा बना दिया है।कुलपति के मार्गदर्शन से प्रेरित होकर, विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सभी वैज्ञानिक डेटा संकलित किया है और काला जीरा के बढ़ते समुदाय को पीपीवी और एफआरए, भारत सरकार के साथ अपनी बहुमूल्य स्थानीय प्रजाति को संरक्षित, विकसित, लोकप्रिय बनाने और औपचारिक रूप से पंजीकृत करने में सहायता की है।

कुलपति ने डा. वी.के.सूद, डा. निमित कुमार और शैलजा शर्मा  की सराहना करते हुए कहा कि इन वैज्ञानिकों की टीम ने की जून, 2022 में शोंग गांव का दौरा करके सारा जमीनी काम किया और पीपीवी और एफआरए को ‘पादप जीनोम संरक्षक समुदाय पुरस्कार ‘ के लिए नामांकन दाखिल किया। उन्होंने बताया कि हिमाचली काला जीरा को मार्च, 2019 के दौरान भारत सरकार द्वारा भौगोलिक संकेत (जीआई) टैग से सम्मानित कर राज्य का गौरव बढ़ाया।कुलपति ने काला जीरा उत्पादन संघ को एक संरक्षण समुदाय के रूप में मान्यता देने और इस बहुमूल्य जड़ी बूटी के लिए पादप जीनोम संरक्षक समुदाय पुरस्कार, 2021-22 के लिए चयन के लिए पीपीवी और एफआरए के अध्यक्ष डा. त्रिलोचन महापात्र के प्रति भी आभार व्यक्त किया।उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह ही विश्वविद्यालय के प्रयासों से पपरोला के निकट बुरली कोठी गांव के एक प्रगतिशील सब्जी उत्पादक गरीब दास को एक लाख रुपये के सरकार द्वारा एक लाख का ‘पादप जीनोम संरक्षक किसान मान्यता सम्मान‘ के लिए चुना गया है।





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