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हिमाचल प्रदेश में बेतरतीब और अवैध निर्माण के भयानक परिणाम

                                     हाईकोर्ट के आदेश माने होते तो नहीं होती इतनी तबाही

शिमला,रिपोर्ट नीरज डोगरा 

हिमाचल प्रदेश में बेतरतीब और अवैध निर्माण के भयानक परिणाम के बारे में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने आठ वर्ष पहले चेतावनी दी थी। वर्ष 2015 में आए भूकंप को ध्यान में रखते हुए अदालत ने कहा था कि अधिकारियों ने हाल के भूकंपों से कोई सबक नहीं सीखा है। इस भूकंप ने हिमालय क्षेत्र, विशेषकर नेपाल को तबाह कर दिया था।


 
12 मई 2015 को अदालत ने प्रदेश में नियमों के विपरीत बने भवनों की ताश के पत्तों की तरह ढहने की आशंका जताई थी। अदालत ने कहा था कि शिमला में बेतरतीब और अवैध निर्माण किया जा रहा है। इस शहर को कंक्रीट के जंगल में बदलने के लिए सभी प्रयास किए जा रहे हैं। उच्च तीव्रता का भूकंप शिमला को मलबे की कब्र में बदल सकता है, क्योंकि यह भूकंपीय क्षेत्र चार-पांच में आता है। फिर भी यह तथ्य शिमला में अधिकारियों को उनकी नींद से बाहर निकालने में विफल रहा है। न्यायालय ने कहा था कि अधिकांश इमारतें नियमों और भवन मानदंडों का उल्लंघन करती हैं।अधिकांश इमारतें खड़ी ढलानों पर अनिश्चित रूप से लटकी हुई हैं और एक-दूसरे से चिपकी हुई हैं। एक मध्यम और उच्च तीव्रता का भूकंप भीड़भाड़ वाली बस्तियों के लिए विनाशकारी हो सकता है, जहां से बचने का कोई रास्ता नहीं है। 

नियमों के विपरीत बने भवनों की ताश के पत्तों की तरह ढहने की आशंका है। खासकर तब, जब किसी भी अधिकारी ने कभी भी इमारतों पर भूकंपीय प्रभाव डालने की परवाह नहीं की है। न्यायालय ने पाया था कि बेतरतीब, अनियोजित और अवैध निर्माणों ने हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी शहरों, विशेष रूप से इसकी राजधानी शिमला की सुंदरता को खराब कर दिया है। अब समय आ गया है कि पूरे हिमालय क्षेत्र में हाल ही में हुई तबाही और भूकंपीय गतिविधि को ध्यान में रखते हुए भवन निर्माण नियमों में उचित संशोधन किया जाए। मानसून की शुरुआत के बाद से ही हिमाचल प्रदेश में विनाशकारी बाढ़ और भूस्खलन हुआ है।

 इससे कई लोगों की मौत हो गई और हजारों लोग बेघर हो गए।वहीं, भारत के महान्यायवादी (अटॉर्नी जनरल) 25 अगस्त को हाईकोर्ट के समक्ष एनएचएआई की इंजीनियरिंग पर अपना पक्ष रखेंगे। सोमवार को वर्चुअल माध्यम से अदालत के समक्ष पेश होकर अटॉर्नी जनरल ने मामले की सुनवाई शुक्रवार तक टालने की गुहार लगाई। अटॉर्नी जनरल ने अदालत को बताया कि हाईकोर्ट के समक्ष इस गंभीर मामले की पैरवी करने में वह गौरवान्वित हैं। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश अजय मोहन गोयल की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की।अदालत ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में हाल ही में भारी बारिश के कारण राष्ट्रीय राजमार्गों पर गंभीर प्रभाव पड़ा है। भूस्खलन के कारण राजमार्गों को काफी नुकसान हुआ है और विशेष रूप से चंडीगढ़-शिमला और चंडीगढ़-मनाली राष्ट्रीय राजमार्ग भूमि कटाव से बाधित हैं। इससे सामान्य जीवन में काफी व्यवधान आया है। इस समस्या की भयावहता को ध्यान में रखते हुए अटॉर्नी जनरल का पक्ष जानना जरूरी है।

 इंजीनियरिंग के क्षेत्र में 45 वर्ष के अनुभव वाले इंजीनियर की शिकायत पर अदालत ने कड़ा संज्ञान लिया है।श्यामकांत धर्माधिकारी की ओर से लिखे पत्र में आरोप लगाया गया है कि पहाड़ों के कटान से पर्यावरण को नुकसान हो रहा है।  हिमाचल प्रदेश में त्रुटिपूर्ण इंजीनियरिंग से बनाई जा रहीं भूमिगत सुरंगें, सड़कें और पुलों से पहाड़ों का अनियोजित उत्खनन किया जा रहा है। सड़कों में ढलान और अवैज्ञानिक तरीके से पुल और सुरंगों का निर्माण किया जाना नुकसान का कारण बनता है। इसके अलावा किरतपुर-नेरचौक फोरलेन निर्माण के दौरान एनएचएआई के ठेकेदार की ओर से जंगलों में मलबा फेंकने की शिकायत पर भी हाईकोर्ट ने संज्ञान लिया है। दोनों मामलों की सुनवाई एक साथ निर्धारित की गई है।




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