Ticker

6/recent/ticker-posts

Header Ads Widget

बायोमास ऊर्जा विकल्प के रूप में चीड़ की पत्तियों का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करेगी सरकार

 चीड़ की पत्तियां हिमालय क्षेत्र की पारिस्थितिकी, विविधता और अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक मानी गई हैं

शिमला,रिपोर्ट नीरज डोगरा 

राज्य सरकार नवीकरणीय ऊर्जा बायोमास (जैव संहति) के वैकल्पिक स्रोत के रूप में चीड़ की पत्तियों का उपयोग करने के लिए एक प्रणाली विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ रही है, ताकि प्रदेश की बहुमूल्य वन सम्पदा को संरक्षित व सुरक्षित करते हुए इसका बेहतर उपयोग सुनिश्चित किया जा सके।हिमाचल में चीड़ के पेड़ बहुतायत में पाए जाते हैं। विशेषतौर पर मध्यम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में चीड़ के घने जंगल स्थित है। पेड़ों से गिरने के उपरांत चीड़ की पत्तियों से जंगल का अधिकतम भू-भाग ढंक जाता है। चीड़ की यह नुकीली पत्तियां सड़ती नहीं हैं और अत्यधिक ज्वलनशील प्रकृति की होती हैं।

चीड़ की पत्तियों में महत्वपूर्ण बायोमास तत्व होते हैं जिससे स्थानीय वनस्पति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पत्तियां ज्वलनशील प्रकृति की होने के कारण शीघ्र आग पकड़ लेती हैं। इससे वनस्पति और वन्य जीवों को बहुत नुकसान पहुंचता है। इसके पर्यावरण पर अल्प एवं दीर्घकालिक परिणाम देखने को मिलते हैं। हालांकि चीड़ की पत्तियों के बायोपॉलिमर के उचित उपयोग से बायोमास ऊर्जा में इनका उपयोग किया जा सकता है।

चीड़ की पत्तियां हिमालय क्षेत्र की पारिस्थितिकी, विविधता और अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक मानी गई हैं। इनके विपरीत प्रभाव को कम करने के प्रयास में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी के हिमालयी क्षेत्र के लिए नवोन्मेषी प्रौद्योगिकी केंद्र ने एक नवीन समाधान विकसित किया है, जिसके तहत चीड़ की पत्तियों का उपयोग बायोमास ऊर्जा के विकल्प के रूप में किया जाएगा। इसके लिए केंद्र नई मशीन लेकर आया है जो चीड़ की पत्तियों से ईंधन पैदा करने वाली ईंटों इत्यादि का उत्पादन कर सकती हैं।

प्रदेश सरकार इस परियोजना में आईआईटी मंडी को सहयोग प्रदान कर रही है। इस मशीन का उपयोग चीड़ की पत्तियों के साथ-साथ अन्य बायोमास की ईंधन ईंटे बनाने के लिए किया जाएगा। प्रदेश सरकार के साथ मिलकर आईआईटी, मण्डी प्रदेश भर में इस प्रकार के संयंत्र लगाने पर कार्य कर रही है।

चीड़ की पत्तियों पर आधारित यह ईंटें पर्यावरण अनुकूल है क्योंकि इनमें सल्फर और अन्य हानिकारक तत्व कम मात्रा में होते हैं। हिमालयी क्षेत्रों में चीड़ के कोन भी बहुतायत में पाए जाते हैं। यह ज्वलनशील प्रकृति के होते हैं तथा ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में भी इनकी भूमिका रहती है।

मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कहा कि थर्मल पावर, सीमेंट और स्टील जैसे कई क्षेत्र हानिकारक उत्सर्जन को कम करने के लिए जीवाश्म ईंधन के विकल्प तलाश रहे हैं। इसलिए चीड़ की पत्तियों से तैयार ईंधन स्रोतों का वैकल्पिक प्रयोग करने के प्रयास किए जा रहे हैं। इनका उष्मीय मान भी अधिक होता है जिससे यह नवीकरणीय ऊर्जा का बेहतरीन विकल्प हैं। यह ग्रामीण अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण का मार्ग भी प्रशस्त करेंगी।

Post a Comment

0 Comments