वहां के वाशिंदे नारकीय जीवन जीने को मजबूर हो चुके हैं
ज्वाली,रिपोर्ट राजेश कतनौरिया
आपको बताते चलें कि तकरीबन 450 कनाल जमीन खाली पड़ी है सड़क की सुविधा ना होने के कारण धीरे-धीरे इस गांव के लोग अपने पैतृक घरों को छोड़कर अन्य स्थान पर जाने को मजबूर हो चुके हैं। एक तरफ देहर खंड पड़ती है तो दूसरी तरफ एक पांव रास्ता है ना तो उस रास्ते पर दो पहिया वाहन और ना ही एंबुलेंस स्थानीय लोगों का कहना है कि अगर कोई बीमार होता है तो हमें पालकी इत्यादि में लेकर उसे तकरीबन 2 किलोमीटर का रास्ता तय करके सड़क तक पहुंचाना पड़ता है और जब भी बरसात का मौसम आता है तो हमें जानवर या इंसान की बलि देनी ही पड़ती है क्योंकि देहर खंड पड़ती है जो कि बरसात के कारण लबालब भरी होती है। उसको पार करते समय व्यक्ति बह भी गए ।
हमने कई बार मंत्रियों को भी इस बात से अवगत करवाया परंतु अब तक किसी भी सरकार ने यह जहमत नहीं उठाई कि इन लोगों के लिए एक एंबुलेंस रोड़ निकाला जाए स्थानीय लोगों का कहना है कि एक बार हमने खुद ही इस रास्ते को बनाने का बेड़ा उठाया था तो वन विभाग ने हमें 14000 का जुर्माना लगाया हालांकि यह सदियों पुराना रास्ता है परंतु अब तक सभी राजनीतिक दलों ने राजनीतिक रोटियां ही सेकी और हमें काला पानी जैसा जीवन जीने को मजबूर कर दिया है अगर जल्द ही इस समस्या का समाधान नहीं किया गया तो आने वाले लोकसभा चुनावों में हम चुनावों का बहिष्कार करेंगे।
तो वहीं लाहड़ू पंचायत का कहना है कि विरेन्द्र सिंह गुलेरिया का कहना है कि भलोआ में जो घर है उनके लिए देहर खड्ड होने के कारण कोई भी रास्ता नहीं है और स्थानीय व्यक्ति की खड्ड में बहने के कारण मृत्यु भी हुई है यहां तक कि रास्ता ना होने के कारण तकरीबन 450 कनाल भूमि बंजर पड़ी है अतः इन लोगों के लिए सड़क सुविधा होना अति आवश्यक है।दूसरी तरफ हार पंचायत प्रधान चतर सिंह का कहना है कि भलोआ गांव वासियों को रास्ते की कोई भी सुविधा नहीं है और इन्हीं के घरों से देहर खड्ड पार करते समय व्यक्ति पानी में बह भी गया था। हमारा सरकार से अनुरोध है कि काला पानी जैसा जीवन जी रहे इन लोगों के रास्ते की सुविधा मुहैया करवाई जाए।
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