पालमपुर, वरिष्ठ पत्रकार सुरेश सूद
चित्र झूठ नहीं बोलते हैं, चित्र गवाही दे रहे हैं की कुल्लू मनाली में हुई तबाही के लिए कौन जिम्मेवार है। कुल्लू का लगभग 140 वर्ष ये पुराना चित्र दर्शा रहा है कि उस वक्त व्यास की चौड़ाई लगभग 200 मीटर तक हुआ करती थी। उसके बाद भी दूर तक कोई निर्माण नहीं हुआ करता था। दूसरी तरफ सैटेलाइट से लिया गया ताजा चित्र दर्शा रहा है । यह कोई आसमानी आफत नहीं बल्कि इस आफत की बुनियाद पिछले कुछ दशकों से धीरे धीरे स्वयं ही इंसान ने जमीन पर रखी।
इन हसीन वादियों को सत्ताधारियों के बलबूते बाजारवाद में बदलने का बढ़ावा मिलता गया तथा पैसा कमाने की लत के चलते स्वयं मनुष्य व्यास नदी के दोनों किनारों में जा घुसा। ऐसे में व्यास नदी ने कभी न कभी सदियों से बने अपने बहाब के प्राकृतिक रास्ते तो खोजने ही थे। जिसका खामियाजा अपनी जानमाल गवां कर मनुष्य को ही भुगतना पड़ा।
जहां व्यास नदी के अस्तित्व से हुई छेड़छाड़।,, वही दिखा, तबाही का मंजर
व्यास नदी की कुल लंबाई 470 किलोमीटर है।मनाली से लेकर मंडी तक 119 किलोमीटर के प्रवाह क्षेत्र में व्यास नदी ने जगह जगह तबाही मचाई। जहां जहां व्यास के अस्तित्व से छेड़छाड़ कर अतिक्रमण हुआ था वहीं भारी जानमाल के नुकसान का तांडव मनुष्य को झेलना पड़ा।
जहां व्यास के अस्तित्व से नहीं हुई छेड़छाड़ वहां व्यास ने नहीं दिखाया खौफ का मंजर।
मनाली से मंडी तक रौद्र रूप दिखा चुकी इसी व्यास नदी ने मंडी से पौंग डैम तक 172 किलोमीटर लंबे प्रवाह क्षेत्र में कहीं कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। इसका बड़ा कारण यही रहा की मंडी से देहरा, पोंगडैम तक सदियों से वह रही व्यास के अस्तित्व से मनुष्य द्वारा कोई छेड़छाड़ नहीं की गई। उफनती व्यास नदी मंडी से आगे संधोल, हारसी,जयसिंहपुर, सुजानपुर, नादौन,व देहरा सहित कई छोटे बड़े गांव, कस्बों के किनारों से गुजरते हुई पोंग डैम पहुंची। स्पष्ट है कि अगर इन इलाकों में भी व्यास के अस्तित्व से छेड़छाड़ हुई होती तो यहां भी अंजाम बुरा होता।
,, सुनें व्यास की व्यथा,,,
हर कलम ने यही लिखा,
व्यास ने तबाही मचाई ,
व्यास ने तबाही मचाई,
सच समझने की किसी ने जहमत नहीं उठाई।,
मैं एक बेजुबान नदी हूं,
खुद आंसुओं से भरी हूं,
सिर्फ इशारा कर रही हूं,
मुनाफाखोरी,सियासत छोड़
मेरी धरती मुझे लौटा दो ।
मेरी धरती मुझे लौटा दो।
मनाली कुल्लू से बहती हुई
मंडी तक मैं पूरी लहूलुहान थी।
आगे चल मेरे प्रवाह ने शांति पाई।
इन घाटियों के जीवन यापन की सीढ़ी रही हूं मैं,,बस मनुष्य से यही गुजारिश है मेरी,,,,,
मेरी धरती मुझे लोटा दो,,,
मेरी धरती मुझे लोटा दो,,,
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