ई-चार्जिंग स्टेशनों के लिए ट्रांसफार्मर स्थापित करने को 3.63 करोड़ रुपये जारी
शिमला,रिपोर्ट नीरज डोगरा
हिमाचल की हरित ऊर्जा राज्य की परिकल्पना को साकार करने के दृष्टिगत राज्य सरकार शिमला शहर और उसके आसपास पर्याप्त चार्जिंग बुनियादी अधोसंरचना निर्मित करने के लिए प्रयासरत है। शहर में ई-बसों के सुचारू संचालन के लिए कई अग्रगामी प्रयास किए जा रहे हैं ताकि शिमला को देश की ‘ग्रीन सिटी’ बनाया जा सके।
शिमला में तारादेवी, टूटीकंडी क्रॉसिंग, लालपानी, जुन्गा और ठियोग में नए चार्जिंग प्वाइंट स्थापित किए जाएंगे। इससे शिमला शहर के 40 किलोमीटर के दायरे में संचालित की जा रही बसों को पर्याप्त चार्जिंग सुविधाएं उपलब्ध होंगी। इसके अलावा, ढली में स्थापित 1,000 केवीए चार्जिंग स्टेशन की क्षमता को भी बढ़ाकर 2,000 केवीए किया जाएगा। राज्य बिजली बोर्ड अब इन सभी चार्जिंग स्टेशनों के लिए ट्रांसफार्मर उपलब्ध करवाएगा। ट्रांसफार्मर स्थापित होते ही ई-बस चार्जर स्थापित कर दिए जाएंगे।
नए चार्जिंग स्टेशन स्थापित होने के बाद शहर के 40 किलोमीटर के दायरे में ई-बसों का संचालन सुचारू हो जाएगा। स्मार्ट सिटी मिशन के तहत, शिमला शहर को हाल ही में 20 ई-बसें प्रदान की गई हैं, जिससे इनकी संख्या 50 से बढ़कर 70 हो गई है। इनमें से छः-छः बसें न्यू शिमला और संजौली सेक्टर को प्रदान की गई हैं और आठ बसें बस स्टैंड क्षेत्र को प्रदान की गई हैं। एचआरटीसी ने अतिरिक्त नई इलेक्ट्रिक बसें खरीदने के लिए टेंडर भी जारी कर दिए हैं।सभी 70 ई-बसें शहर के स्थानीय रूट पर ई-बसें संचालित की जाएंगी, जिससे राजधानी में सार्वजनिक परिवहन प्रणाली पूरी तरह से ई-परिवहन सुविधा में बदल जाएगी और शिमला शहर के वातावरण को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त रखने में यह सहायक सिद्ध होंगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि देश में इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग निरंतर प्रगति कर रहा है और राज्य सरकार ने भी हिमाचल में इलेक्ट्रिक गतिशीलता को बढ़ावा देने के लिए नई योजनाएं और प्रोत्साहन शुरू किए हैं। प्रदेश सरकार यह सुनिश्चित कर रही है कि राज्य में पारम्परिक जीवाश्म ईंधन के उपयोग करने वाले वाहनों की संख्या में कमी कर वातावरण को कार्बन उत्सर्जन से मुक्त बनाया जाए। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने शिमला शहर के अलावा राष्ट्रीय और राज्य राजमार्गों और अन्य प्रमुख सड़कों पर विद्युत चालित वाहनों के लिए चार्जिंग स्टेशन स्थापित करने की दिशा में कई पहल की हैं और जिला स्तर पर इसके लिए भूमि की पहचान करने की एक स्थायी प्रक्रिया शुरू की गई है।
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