अप्रैल 2018 से भारत सरकार ने मिलेटस को लेकर मिशन मोड में कार्य आरंभ किया
पालमपुर,रिपोर्ट प्रवीन शर्मा
मिलेट्स यानि पोषक अनाज। इन्हें हम मोटा अनाज भी कहते हैं तो इसके छोटे-छोटे व बड़े-बड़े दानों के आकार के कारण इसे छोटे-मोटे अनाज के नाम से भी पुकारा जाता है।
स्वास्थ्य की दृष्टि से जहां पांच-छह दशक पूर्व हमारे घरों में यह बहुतायत मात्रा में मिलते थे वहीं अब इन पोषक अनाजों को हमारे किसानों ने ही भूला दिया। घर का जोगी जोगड़ा और बाहर का जोगी सिद्ध पुरानी कहावत है। यह कहावत पोषक अनाज पर खरी उतरती प्रतीत हो रही है। बाजार के कुछ जानकारों ने पोषक अनाज के महत्व को समझते हुए फिर से किसानों के लिए इसे खेतों में तैयार करने के लिए खाका खींचने के प्रयास किए। अप्रैल 2018 से भारत सरकार ने मिलेटस को लेकर मिशन मोड में कार्य आरंभ किया। इन्हीं प्रयासों का नतीजा है कि संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष घोषित किया। परिणामस्वरूप पूरे देश में वैज्ञानिक वर्ग पोषक अनाज में शामिल पारंपरिक खाद्यान्नों बाजरा, मडुआ, कोदो, साँवा, कोइनी,कुटकी,कंगनी,जौ आदि के महत्व को बता कर किसानों को अपने खेतों में उगाने को तैयार करवाते हुए विभिन्न आयोजनों के तहत इसके महत्व को सामने लाया जा रहा है। मोटे अनाजों के उत्पादन में देश का करीबन चालीस फीसदी हिस्सा है।
प्रमुख खाद्यान्न धान और गेहूं के लिए जिस प्रकार बहुत अधिक मेहनत की आवश्यकता रहती है वहां मिलेट्स के लिए अधिक श्रम नहीं लगता। इन पारंपरिक खाद्यान्नों को पोषक अनाज क्यों कहा जाता है उसके पीछे हमारे स्वास्थ्य का राज छिपा है। स्वस्थ रहने के लिए जो प्रोटीन शरीर के लिए आवश्यक है वह इन खाद्यान्नों में बहुतायत मात्रा में रहती है। इन्हें नियमित उपयोग में लाया जाए तो कोई हानि नहीं होती। खिचड़ी और चपाती के साथ इसका सेवन अंकुरित करके भी किया जा सकता है।पोषक अनाजों में रेशे की मात्रा, प्रोटीन, आयरन, कैल्शियम, विटामिन बी,कार्बोहाइडेªट, कापर,नियासिन की मात्रा पर्याप्त होती है।
पोषक अनाजों के उत्पादन के लिए कम उपजाऊ भूमि भी बेहतर रहती है। फसल के लिए रसायनों का प्रयोग नहीं करना पड़ता। कम समय में इसे तैयार करते हुए करीबन दो वर्ष तक इसका भंडारण हो सकता है। जिस प्रकार से कृषि कार्यों में जल की दिक्कत किसानों को पेश आ रही है उसे देखते हुए पोषक अनाजों को खेतों में तैयार करने के लिए पानी भी अधिक नहीं चाहिए। कृषि कार्यो में जल की उपयोगिता को देखते हुए भविष्य में कितना जल मिल पाएगा यह तो समय के गर्भ में है। मगर पानी की उपलब्धता का खाका खींचते हुए पोषक अनाजों की सूची को तैयार करते हुए किसानों को उसके बारे में उपयोगी जानकारी दी जा सकती है। धान की जगह किसानों को रागी व अन्य की फसलों को तैयार करने के लिए कहा जा सकता है क्योंकि इनमें तीस फीसदी कम पानी का उपयोग होता है।
चौधरी सरवण कुमार हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर ने कंगनी, स्वांक, कोदरा, रागी, सांवा और चीना पर उपयोगी जानकारी देते हुए पंपलेट्स को भी तैयार किया है। जिसमें इसके उत्पादन से लेकर उपयोग तक विस्तृत जानकारी को देने का प्रयास है। राज्यपाल व विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री शिव प्रताप शुक्ल ने शिमला में इन पंपलेट्स को विमोचित करते हुए किसानों और जनता के सुपुर्द किया है। इन पंपलेट्स में पोषक अनाज का स्वास्थ्य पर लाभ, पौष्टिक गुण, पौष्टिक तत्वों की मात्रा, बीज एवं बुवाई का समय, खाद व उर्वरक, खरपतवार नियंत्रण, फसल कटाई के साथ इसके मूल्यवर्धित उत्पादों के बारे में भी जानकारी ले सकते हैं।कुलपति प्रो एच.के. चौधरी बताते हैं कि कृषि विश्वविद्यालय पोषक अनाजों को लेकर वर्ष भर जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन कर रहा है। धर्मशाला में आयोजित जी 20 की बैठक में पोषक अनाजों से तैयार उत्पादों को विशेष तौर पर रखा। अब किसान मेले का आयोजन प्रमुखता से कृषि विश्वविद्यालय में हो रहा है जिसमें पोषक अनाजों से तैयार मूल्यवर्धित उत्पादों को किसानों और मेहमानों के लिए परोसा जाएगा।
0 Comments