राज्यपाल ने भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान का दौरा किया
शिमला,रिपोर्ट नीरज डोगरा
राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि किसी भी संस्थान की असली पहचान न तो उसका भवन होता है और न ही दीवारें, बल्कि उसकी वास्तविक पहचान सदैव उसकी कार्यशैली और उपलब्धियों से प्रदर्शित होती है। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान (आईआईएएस), शिमला ने शैक्षणिक और शोध उपलब्धियों से अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। संस्थान अकादमिक और बौद्धिक उत्कृष्टता का प्रतीक रहा है। राज्यपाल आज यहां ऐतिहासिक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के शोधार्थियों (अध्येताओं एवं सह-अध्येताओं) को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय महत्व का यह संस्थान पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के भारत में ज्ञान और शोध की प्राचीन परंपरा को पुनर्स्थापित करने के स्वपन को साकार कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह हम सभी भारतीयों को अपने देशपर गर्व करने का एक और अवसर प्रदान कर रहा है और लंबे समय से अंतःविषय अनुसंधान और महत्वपूर्ण सोच को बढ़ावा देने में सबसे आगे रहा है। उन्होंने कहा कि यह नवाचार के लिए एक उत्प्रेरक रहा है और इसने हमारे देश के बौद्धिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि यह संस्थान मूलतः मानविकी और सामाजिक विज्ञान में गहन सैद्धांतिक अनुसंधान के लिए समर्पित है। उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि संस्थान ने बौद्धिक जिज्ञासा और अकादमिक शोध की भावना को बढ़ावा दिया है।
राज्यपाल ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि आईआईएएस जैसे शोध संस्थान अनुसंधान को बढ़ावा देने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करने की दिशा में सक्रिय रूप से कार्यशील हैं। उन्होंने कहा कि संस्थान ने अपनी व्यापक उद्यमशीलता के माध्यम से विभिन्न व्याख्यान शृंखलाओं, साप्ताहिक सेमिनारों और अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र के माध्यम से देश और दुनिया के प्रसिद्ध विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान आयोजन कर ज्ञान संचित किया है, जो किसी भी संस्थान के लिए अमूल्य है। उन्होंने कहा कि लगभग दो लाख प्रतिष्ठित विद्वानों की पुस्तकों से सुसज्जित संस्थान का पुस्तकालय एक बड़ी धरोहर है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि संस्थान निरंतर अनुसंधान और शोध की संस्कृति को आगे बढ़ाता रहेगा। उन्होंने संस्थान के पुस्तकालय में भारतीय भाषाओं पर आधारित ग्रंथों के एक अलग संग्रह पर बल दिया।इससे पहले, राज्यपाल ने संस्थान द्वारा प्रकाशित दो पुस्तकों और केंद्रीय हिंदी निदेशालय की दो अन्य पुस्तकों का विमोचन भी किया।इस अवसर पर राज्यपाल ने छायाचित्र प्रदर्शनी, पुस्तकालय, वायसराय के कार्यालय एवं कक्ष का अवलोकन किया तथा संस्थान के ऐतिहासिक महत्व में गहरी रुचि दिखाई।
आईआईएएस की अध्यक्षा प्रोफेसर शशिप्रभा कुमार ने राज्यपाल का स्वागत किया और कहा कि वेदों से अमृत्व की कामना भारत में हुई। अमृत्व का अर्थ भारतीय संस्कृति को उच्च विचारों के द्वारा भावी पीढ़ी तक रूपांतरित करना है। उन्होंने अपनी मृत्यु के उपरांत संस्कृत और दर्शनशास्त्र की अपनी पुस्तकों का संग्रह आईआईएएस को दान करने की घोषणा की।आईआईएएस के निदेशक प्रोफेसर नागेश्वर राव ने कहा कि संस्थान के पुस्तकालय में 2 लाख पुस्तकों और पत्रिकाओं का संग्रह है और इस वर्ष 13 शोध पुस्तकें प्रकाशित की हैं जबकि 7 प्रकाशनाधीन हैं। उन्होंने कहा कि संस्थान ऐतिहासिक और शैक्षिक महत्व का है, जहां भारतीय परंपराओं पर आधारित शोध पर विशेष ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।इस अवसर पर संस्थान के पूर्व अध्यक्ष प्रो. कपिल कपूर ने भारत की ज्ञान परंपरा पर अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हमारी सभ्यता ज्ञान केन्द्रित, संस्कृति मूल्य और समाज कर्तव्य आधारित रही है।
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