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‘मन की बात ‘ कार्यक्रम ने कृषकों को मधुमक्खी पालन अपनाने के लिए प्रेरित किया : कुलपति एच के चौधरी

मधुमक्खी पालन लाभप्रद और पर्यावरण के अनुकूल कृषि-व्यवसाय का मॉडल

कृषि विश्वविद्यालय का नगरोटा स्थित मधुमक्खी केंद्र 1936 से किसानों को प्रशिक्षित करने में निभा रहा  महत्वपूर्ण भूमिका

पालमपुर,रिपोर्ट
चौसकु हिमाचल कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एच के चौधरी ने कहा कि देश के बदलते कृषि परिदृश्य में स्थायी खाद्य उत्पादन एवं पोषण सुरक्षा के लिए जैविक और प्राकृतिक कृषि की तरफ केंद्रित हो रहा है। वैज्ञानिक मधुमक्खी पालन ने छोटे किसानों की आय बढ़ाकर उनकी आजीविका पर अच्छा प्रभाव  डाला है। अतः मधुमक्खी पालन को एक बहुत ही लाभप्रद और पयाावरण के अनुकू ल कृ षि-व्यवसाय का मॉडल माना जाता है। उन्होंने कहा कि माननीय प्रधानमंत्री जी ने ‘मन की बात’ कार्यक्रम की 91वीं कड़ी (जिसका प्रसारण 31 जुलाई 2022 को हुआ था) में
स्पष्ट रूप से प्रकाश डाला कि शहद की मिठास हमारे किसानों की आय को बढ़ाकर उनके जीवन को बदल रही है।
इस संदर्भ में उन्होंने देश के युवाओं से विभिन्न अवसरों का पता लगाने और उद्यमिता की भावना से मधुमक्खी पालन में नई संभावनाओं को साकार करने के लिए प्रेरित किया। 
 इस अवसर पर उन्होंने यमुनानगर (हरियाणा ), जम्मू(जम्मू
एवं कश्मीर) और गोरखपुर (उत्तर प्रदेश ) के तीन सफल मधुमक्खी पालक किसानों की उपलब्धियों की सराहना भी की थी। 

प्रधानमंत्री ने अपने ‘मन की बात ’कायाक्रम की इस कड़ी में मधुमक्खी पालन की महत्ता को बताते हुए बल देकर कहा कि वास्तव में मधुमक्खी पालन एक ऐसा शानदार उद्यम है, जो आर्थिक रूप से संपन्न बनाता है, पोषण 
सुरक्षा सुनियोजित करता है और पर्यावरणीय अनुकूलता को बढ़ाता है।
इसी संदर्भ में, हाल ही में, भारतीय कृ षि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर), नई दिल्ली द्वारा अखिल भारतीय स्तर पर मन की बात के प्रसंग पर 'मधुमक्खी पालन द्वारा कृषि उद्यषमता और स्थायी आजीविका  को बढ़ावा', भविष्य पर अध्ययन किया गया। 
इस अध्ययन से यह निकल कर आया कि कृषि विज्ञान के लिए मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिए
जागरूकता, प्रशिक्षण और प्रदर्शन कार्यक्रमों के आयोजन द्वारा महत्वपूर्ण भूमिका  निभाई है, जिससे 32 प्रतिशत व्यकितगत मधुमक्खी पालक इस व्यवसाय को अपनाने के लिए प्रेरित हुए।  मधुमक्खी पालन से होने वाले लाभ और मन की बात द्वारा सुनी गई सफलता की कहानियों  ने क्रमशः 27.50 प्रतिशत और 22.50 प्रतिशत व्यक्तिगत मधुमक्खी पालकों को इस व्यवसाय को अपनाने के लिए प्रेरित किया गया  है। यह भी पाया गया कि मधुमक्खी पालन से स्थायी और उच्च आय और सरकारी एवं निजी एजेंसियों व संस्थाओं द्वारा दी गयी सहायता से इस व्यवसाय के प्रेषित व्यक्तिगत और सामूहिक मधुमक्खी
पालकों के दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव आया। अध्ययन से यह पता चला मधुमक्खी पालन वास्तव में एक
लाभकारी पूरक व्यवसाय के रूप में आय को बढ़ाने वाला है। अध्ययन में शामिल कृषकों में से सामूहिक मधुमक्खी पालन से औसत आय (प्रति 50 मधुमक्खी बक्सों से) ₹1,28,328 व व्यक्तिगत मधुमक्खी पालकों की औसत आय ₹ 
95,947 पायी गई। मधुमक्खी पालकों द्वारा मधुमक्खी पालन में जिन बाधाओंऔर परेशानियों का सामना करना पड़ता
है उसमें मुख्यरूप से ‘तकनीकी मार्गदर्शन और प्रशिक्षण' से संबंधित थी, इसके आलावा सामान्य बाधाएं जैसे
'मधुमक्खी के कीट और  बीमारियों के बारे में सूचना की कमी' , जिसका व्यक्तिगत (35 प्रतिशत) और सामूहिक (30प्रतिशत) दोनों तरह के मधुमक्खी पालकों को अपना व्यवसाय बढ़ाने में सामना करना पड़ रहा है। 
कुलपति चौधरी ने कहा कि कृषि विश्वविद्यालय का नगरोटा स्थित मधुमक्खी केंद्र 1936 से किसानों को प्रशिक्षित करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। साथ ही
'मन की बात' कार्यक्रम में मधुमक्खी पालन पर माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा बात करने से ये प्रभाव अवश्य हुआ है कि मधुमक्खी पालन व्यवसायियों के लिए काम करना थोड़ा आसान हुआ है, क्योंकि इसके बाद विभिन्न अनुसंधान , तकनीकी संस्थानों, विकास  संस्थानों, और विभिन्न  सरकारी योजनाओं में इस व्यवसाय की सहायता के लिए सक्रिय  प्रयास होने लगे।
हालांकि भारत में मधुमक्खी पालन अभी भी विकासशील अवस्था में है, फिर भी संस्थागत हस्तक्षेप, नितिगत सहायता
और तकनीकी मार्गदर्शन ने मधुमक्खी पालन क्षेत्र के लिए सहायक वातावरण तैयार हुआ है, इसके लिए हाल ही में
हुई 'मन की बात' बात कार्यक्रम से जन-साधारण में बढ़ी जागरूकता ने सहयोग किया है।

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