कांगड़ा चाय को यूरोपियन यूनियन (EU) से जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग मिला
बैजनाथ,रिपोर्ट रितेश सूद
कांगड़ा के लिए एक अच्छी खुशखबरी मिली है। जहां कांगड़ा चाय को यूरोपियन यूनियन (EU) से जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग मिला है। भारत में स्थित EU डेलिगेशन ने ट्वीट कर इसकी पुष्टि की है।उन्होंने लिखा कि कांगड़ा चाय को अब GI टैग मिल गया है। यूरोपीय संघ और भारत दोनों GI पर जोर देते है,साथ ही दोनों स्थानीय भोजन को महत्व देते हुए स्थानीय परंपराओं को बनाए रखते हैं। इसके अलावा वो समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करके उसे बढ़ावा देते हैं।
यूरोपीय बाजार में प्रवेश होगी कांगड़ा की चाय
इस टैग के मिलने से कांगड़ा चाय के व्यापार से जुड़े लोगों में खुशी है।यह टैग कांगड़ा चाय को यूरोपीय बाजार में प्रवेश करने का अवसर प्रदान करेगा। इससे पहले 2005 में इसे भारत का GI टैग मिला था। स्थानीय लोगों की मानें तो 1999 से हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा क्षेत्र में चाय की खेती और विकास में लगातार सुधार हुआ है।
कांगड़ा चाय पश्चिमी हिमालय में धौलाधार पर्वत श्रृंखला की ढलानों पर समुद्र तल से 900-1400 मीटर ऊपर उगाई जाती हैं। इसका स्वाद काफी बेहतरीन होता है।पालमपुर बैजनाथ के क्षेत्रों,जिला मंडी सहित चम्बा के कुछ क्षेत्रों में इसका उत्पादन किया जाता है।
क्या है GI टैग
GI मुख्य रूप से एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र से उत्पन्न होने वाले कृषि, प्राकृतिक या निर्मित उत्पादों, हस्तशिल्प और औद्योगिक वस्तुओं के लिए दिया जाता है। इसके अलावा यह टैग इस वजह से दिया जाता है, ताकि प्रोडक्ट को लेकर उस भौगोलिक क्षेत्र को कानूनी अधिकार मिल सके। टैग मिलने से अब लोगों में कांगड़ा चाय को लेकर जागरुकता बढ़ेगी, जिससे साफतौर पर इसकी बिक्री में इजाफा होगा। इसके अलावा इस चाय को दूसरी जगहों पर भी किसान फायदे के लिए उगाएंगे।
कांगड़ा चाय की खासियत
स्थानीय लोगों के मुताबिक यह चाय हरी और काली दोनों प्रकार की होती है। इसमें काली वाली का स्वाद मीठा होता है, जबकि हरी का स्वाद सुगंधित लकड़ी की तरह होता है।कोरोना काल में तो कुछ एक्सपर्ट्स ने यहां तक दावा कर दिया था,कि ये चाय वायरस से लड़ने में शरीर की मदद करती है।
खेती को दिया जा रहा बढ़ावा
कांगड़ा चाय के विकास और खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। चार विभाग इसकी देख रेख कर रहे है,जिसमे भारतीय चाय बोर्ड क्षेत्रीय कार्यालय पालमपुर, राज्य के सहकारी और कृषि विभाग और CSIR, IHBT पालमपुर और चौधरी सरवन कुमार कृषि विश्वविद्यालय, पालमपुर शामिल है।
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