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नहीं भुला जाएगा इतिहास का वो पन्ना जिसमे खोये हमने अपने शूरवीर

                                      शहीद दिवस के दिन देते है सब शूरवीरों को श्रद्धांजलि

ब्यूरो रिपोर्ट 

नहीं भुला सकता कोई भी देशवासी शूरवीरो के दिए हुए बलिदानो को ! चाहे वो भगत सिंह हो चाहे राजगुरु या  फिर सुखदेव इनके दिए हुए बलिदानो को देश का कोई भी नागरिक नहीं भुला सकता ! इन्होने हमारे और हमारे देश क लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं की और ख़ुशी ख़ुशी देश के लिए उसकी आज़ादी के लिए अपनी जान दे दी ! इतिहास में पड़ा है की बताया जाता है कि जब महात्मा गाँधी जी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था तो इस फैसले से नाराज़ हो कर भगत, चंद्रशेखर और बिस्मिल जैसे हजारों युवाओं ने अंग्रेजों के खिलाफ हथियारबंद क्रांति का रुख कर लिया था। चंद्रशेखर आजाद की लीडरशिप में भगत ने भी हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) नाम का ग्रुप जॉइन कर लिया था। 


बताया जाता है की भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ने 1928 में एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी जॉन सॉन्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस जुर्म में 23 मार्च 1931 को शहीद-ए-आजम भगत सिंह को उनके दो साथियों राजगुरु और सुखदेव के साथ अंग्रेजों ने फांसी पर लटकाया था।इतिहास गवाह है की कैसे हमारे शूरवीरो ने अपने देश के लिए  खुद को अमर कर लिया ! बताया यह भी जाता है की  जब इन तीनो  फांसी हुई थी उस वक़्त इनको खाना भी नसीब नहीं हुआ था ! 

भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को लाहौर सेंट्रल जेल में फांसी दी जानी थी। लेकिन भगत इस फैसले से खुश नहीं थे। उन्होंने 20 मार्च 1931 को पंजाब के गवर्नर को एक खत लिखा कि उनके साथ युद्धबंदी जैसा सलूक किया जाए और फांसी की जगह उन्हें गोली से उड़ा दिया जाए।





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