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काला मोतिया यानि ग्लूकोमा मुख्यतः 50 वर्ष आयु से अधिक, चश्मा लगाने वाले,सगे संबंधियों में ग्लूकोमा होना , मधुमेह , स्टीरॉयड खाने वालों को कभी भी अपनी चपेट में ले लेता है: डा. रोहित गर्ग

पालमपुर, रिपोर्ट 
12 मार्च से 18 मार्च तक चल रहे विश्व ग्लूकोमा  सप्ताह के उपलक्ष्य पर  मेला मल सूद  रोटरी आई अस्पताल मारंडा के सह निदेशक नेत्र रोग विशेषज्ञ डा. रोहित गर्ग ने कहा कि आंखों में आने वाले काला मोतिया यानि ग्लूकोमा मुख्यतः 50 वर्ष  आयु से अधिक, चश्मा लगाने वाले,सगे संबंधियों में ग्लूकोमा होना , मधुमेह ,  स्टीरॉयड खाने वालों को कभी भी अपनी चपेट में ले लेता है । 
जिसका मरीज को आभास तक नहीं होता है और आँखों की नियमित स्क्रीनिंग ना करवाने पर आँखों की स्थाई रूप से रोशनी जा सकती है या कम हो सकती है । उन्होंने कहा की काला मोतिया को लेकर डा. गर्ग ने कहा कि आंखों इस रोग से बचने के लिए लोगों को समय समय पर अपनी आंखों की जांच करवानी होगी। 
अन्यथा, इससे आंखों की रोशनी जा सकती है। उन्होंने कहा कि इसके अधिक लक्षण कोई नहीं होते, जांच से ही इसका पता चलता है। हांलाकि आंखों के दाएं और बाएं तरफ में रखी या खड़ी चीजें न दिखना भी इसका एक बड़ा लक्षण है जबकि इसका बड़ा कारण आंखों के अंदरुनी दबाव में वृद्धि होना है।  उन्होंने कहा कि काला मोतिया के समय पर पता चलने से इसको दवाईयां या सर्जरी से ठीक किया जा सकता है। काला मोतिया के  कारण जो नुकसान आंख का हो  चुका होता है इसकी भरपाई नहीं की जा सकती है लेकिन  पता चलने पर अंधेपन से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि देश में एक करोड़ ३० लाख लोगों को अंधापन काला मोतिया के कारण है जिसमें ९० प्रतिशत लोग काला मोतिया के कारण अंधे है जबकि दस प्रतिशत लोगों में ही अन्य कारण अंधेपन का है।

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