हिमाचल प्रदेश की पहली व्हीलचेयर यूजर एमबीबीएस स्टूडेंट बनी सरोत्री गांव की निकिता चौधरी, हाईकोर्ट से जीती अपने हक की लड़ाई
कांगड़ा,रिपोर्ट
नगरोटा बगवां उपमंडल की बाबा बड़ोह तहसील के सरोत्री गांव की निकिता चौधरी हिमाचल प्रदेश की पहली व्हीलचेयर यूजर एमबीबीएस स्टूडेंट बन गई है। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायलय शिमला के आदेश के बाद निकिता चौधरी को डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा में एमबीबीएस में एडमिशन मिल गई है। निकिता चौधरी चलने में असमर्थ है, इसी कारण उसे टांडा मेडिकल कॉलेज का स्टूडेंट बनने में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा। जिसे टांडा मेडिकल कॉलेज के प्रशासन ने यह कह कर एडमिशन देने से इनकार कर दिया था कि यह लड़की कुछ नहीं कर सकती है, जीवट की धनी उस बेटी ने कानून का दरवाजा खटखटा कर अपने हक की लड़ाई को जीत लिया।
चंडीगढ़ में निकिता चौधरी को एडमिशन के लिए पात्र बताया था, लेकिन परिवार के लिए बेटी को वहाँ पढ़ाना मुश्किल था। जब वह टांडा मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए पहुंची तो वहां उसका मेडिकल टेस्ट कर उसे 90 प्रतिशत विकलांग बता कर एडमिशन देने से इनकार कर दिया। इस पर निकिता चौधरी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। हाई कोर्ट ने चंडीगढ़ में विशेष मेडिकल बोर्ड बिठाकर उसका दोबारा मेडिकल करवाया, जिसमे उसे 78 प्रतिशत विकलांग घोषित किया गया। इसी आधार पर अदालत ने टांडा मेडिकल कॉलेज में उसकी एडमिशन के लिए आदेश दिए।
बेशक 2 साल की उम्र में ही निकिता चौधरी को रहस्यमयी बीमारी ने घेर लिया और उम्र बढ़ने के साथ उसे व्हीलचेयर के सहारे होना पड़ा, लेकिन बीमारी उसके हौसलों की उड़ान को नहीं रोक पाई। बचपन से पढ़ने में होशियार निकिता चौधरी के जीवन संघर्ष में दसवीं पास चौधरी दंपति की भूमिका को सैल्यूट करने को दिल करता है। रोज बेटी को स्कूल छोड़ने और लाने के लिए यह दंपति पूरी तरह समर्पित रहा। नगरोटा बगवां में पढ़ाई शुरू हुई तो होनहार बेटी के भविष्य के लिए घर छोड़ क्वार्टर लिया गया। मां- बाप और भाई की मेहनत रंग लाई।
निकिता चौधरी ने प्राथमिक शिक्षा आधुनिक पब्लिक स्कूल दहरियां से हुई और उसके बाद हिमालयन पब्लिक स्कूल नगरोटा बगवां से जमा दो की पढ़ाई की। निकिता चौधरी ने साल 2022 में पहले ही प्रयास में नीट परीक्षा पास की। निकिता चौधरी को पीजीआई चंडीगढ़ में तो एडमिशन के लिए पात्र बताया लेकिन टांडा मेडिकल कॉलेज प्रशासन ने उसकी विकलांगता के चलते एडमिशन देने से इनकार कर दिया। उसने टांडा मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए उच्च न्यायालय शिमला का दरवाजा खटखटाया, जहां से उसे न्याय मिला।
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