अकेले विक्रम बत्रा मैदान के आसपास पोड़ियों में कंक्रीट बिछाए जाने के कार्य के बाद आधा दर्जन देवदार के पेड़ खो चुके अपना अस्तित्व
पालमपुर,विशेष रिपोर्ट सुरेश सूद
पालमपुर वर्षों पहले अंग्रेजों द्वारा द्वारा भारी मात्रा में रोपे गए देवदार के पेड़ों पर दिनो दिन संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हर वर्ष दर्जनों पेड़ सुख कर खत्म हो रहे हैं या फिर अवैध रूप से भी काटे जा रहे हैं। किसी समय पालमपुर के सौंदर्य को चार चांद लगाने वाले और आबोहवा को खुशनुमा बनाने वाले देबदारों पर अब शहरीकरण भी भारी पड़ रहा है।अकेले विक्रम बत्रा मैदान के आसपास पोड़ियों में कंक्रीट बिछाए जाने के कार्य के बाद आधा दर्जन देवदार के पेड़ अपना अस्तित्व खो चुके हैं। पालमपुर व इसके आसपास के क्षेत्र को विकसित करने के लिए अंग्रेज हुकूमत ने चाय के बागान लगाने के साथ-साथ देवदार के पौधों का रोपण भी भारी मात्रा किया था।
4200 फुट की ऊंचाई पर स्थित पालमपुर कस्बे के इर्द-गिर्द भारी मात्रा में देवदार के पौधे लगाए थे। जिसके बाद इस क्षेत्र की आबोहवा के चलते पालमपुर को एक छोटे से हिल स्टेशन की संज्ञा मिल गई थी। यह प्रदेश का पहला ऐसा स्थान था जहां इतनी कम ऊंचाई पर भारी मात्रा में देवदार के पौधे लगाए गए। देवदार के पौधे की ग्रोथ अत्यंत धीमी होती है तथा पूरी व्यस्क अवस्था में पहुंचने के लिए इस पेड़ को 80 साल का सफर तय करना पड़ता है।
पालमपुर के पिछले 50 वर्ष पूर्व के इतिहास में जाएं तो हर 50 मीटर पर मांरंडा से लेकर बंदला तक देवदार के पेड़ों के दर्शन हो जाते थे। लेकिन बाद में सरकारी भवनों के निर्माण के चलते इन पेड़ों का कटना, कुछ का बिमारी से सुख जाना वा कुछ लोगों द्वारा अपने निजी जमीन से पेड़ों का काट लिए जाने से ये विलुप्त होते जा रहे हैं। ऐसे में इन पेड़ों के प्रति बन विभाग और अन्य प्रशासनिक अधिकारियों को इस स्थिति से बेपरवाह रहना चिंता का विषय है।
सलोह निवासी स्वर्गीय ठाकुर बख्शी चंद ने 1961 से देवदार के पेड़ को पीपल के पेड़ की तरह संरक्षित करने के लिए चारों तरफ लगवाया टियाला
बेशक देवदार के पौधे ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही अधिक पाए जाते हो लेकिन अगर कोई पौधा चंगर के किसी ईलाके में अपनी आयु के 100 वर्ष पूरे कर रहा हो तो यह भी किसी अचंभे से कम नहीं है। चित्र में दिखाया गया ये पोधा समुद्र तल से मात्र 2800 फूट की ऊंचाई पर डरोह के समीप भाटीलू स्थान पर एक बड़ा देवदार का पेड़ कई वर्षो से पूरी तरह हरा भरा है । इस जमीन के मालिक सलोह निवासी स्वर्गीय ठाकुर बख्शी चंद ने 1961 इस देवदार के पेड़ को पीपल के पेड़ की तरह संरक्षित करने के लिए चारों तरफ से टियाला भी लगवाया है जहां आने जाने वाले लोग आराम भी करते हैं। लगभग 150वर्ष पुराने इस पेड़ की मौजूदगी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि अंग्रेजों ने पलम घाटी के अलावा चंगर क्षेत्र में भी उस समय देवदार पौधे रोपित करने के प्रयास किए हैं।
क्या कहते हैं पालमपुर से रिटायर्ड सैशन जज एवम प्रमुख समाजसेवी सुरेश चौधरी
पालमपुर के मिशन कंपाउंड,चर्च के आसपास ,होटल टी बड, परिसर, कोर्ट परिसर, व सीता पार्क तक ही देवदार के पेड़ों की झलक मौजूद है। देवदार के पेड़ पालमपुर की शान रहे हैं। अचानक सुख रहे देवदार गहन चिंता का विषय है । इन पौधों के सूखने के कारण बन विभाग को ढूंढने होंगे तथा खाली स्थान चिन्हित करके ज्यादा से ज्यादा देवदार रोपित करने लिए सभी को अपना योगदान देना होगा।
क्या कहते हैं नितिन पाटिल,डीएफओ पालमपुर।
देवदार पेड़ की औसत आयु 120 साल मानी गई है और पालमपुर में ज्यादातर देवदार इस आयु को पार कर चुके हैं। इस वजह से ये पेड़ सुख रहे हैं। ऐसी स्थिति में ये पेड़ रूट रोट, व ट्रंक कैंकर नामक बिमारी का शिकार हो रहे है। कंक्रीट द्वारा इनके तने तक को ढकना भी एक कारण हो सकता है। जितने पेड़ सूख रहे हैं, विभाग नए क्षेत्रों में देवदार रोपित भी कर रहा है। जहां तक निजी जमीन पर से पेड़ काटने की बात है तो उसमें सरकार द्वारा तीन पेड़ काटने की परमिशन का प्रावधान है। नगरनिगम क्षेत्र में कटने वाले पेड़ो के लिए अलग से कानून का प्रावधान है उसमे वन विभाग का कोई रोल नही होता।
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