आधुनिक तकनीकों को अपनाते हुए अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहजें
कृषि विश्वविद्यालय देगा हर संभव सहायता
पालमपुर, रिपोर्ट
चौसकु हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो एच.के.चौधरी ने चंबा जिले के भरमौर क्षेत्र के भरमाणी और अन्य गांवों का दौरा किया। उन्होंने चरवाहों के साथ बातचीत की और उन्हें अपनी भेड़ और बकरी से संबंधित समस्याओं के समाधान के लिए पशु चिकित्सा वैज्ञानिकों की सेवाओं का विस्तार करने का आश्वासन दिया। चरवाहों ने बताया कि उन्हें चंबा के पहाड़ों से हिमाचल प्रदेश के निचले इलाकों में सर्दियों के दौरान और गर्मियों में वापस आने के दौरान बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि संक्रामक फुट-एंड-माउथ डिजीज (एफएमडी) या खुर-मुंह की बीमारी (एचएमडी) जैसी बड़ी समस्या उनके धण ;झुंडोंद्धको भारी नुकसान पहुंचाती है।
उन्होंने कुलपति से इस तरह की घातक बीमारी के प्रकोप के दौरान अपने धण झुंडों को चिकित्सा सुविधा प्रदान करने का आग्रह किया। साथ ही ऊन की गुणवत्ता और उत्पादन में सुधार करने और बढ़ाने के लिए तकनीक का सुझाव देने पर भी चर्चा की। उनकी चिंता यह थी कि नई पीढ़ी इस पेशे को नहीं अपना रही है और अन्य व्यवसायों की तलाश कर रही है।
कुलपति ने उन्हें उनकी समस्याओं की पूरी जानकारी दी और उन्हें विश्वविद्यालय की तरफ से हर तरह की मदद का आश्वासन दिया।
उन्होंने उनके साथ विश्वविद्यालय के डॉ. जी.सी. नेगी पशु चिकित्सा एवम पशु विज्ञान महाविद्यालय के संबंधित विभागों और वैज्ञानिकों के टेलीफोन नंबर साझा किए, जिनका उपयोग वे जरूरत पड़ने पर कर सकते हैं।
प्रो. चौधरी ने इन चरवाहों को सलाह दी कि वे अपनी समस्याओं के बारे में विस्तृत जानकारी लेने के लिए विश्वविद्यालय के पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान महाविद्यालय का दौरा करें। उन्होंने पूरा दिन चरवाहों और उनके झुंड के साथ बिताया।
कुलपति ने क्षेत्र के युवाओं से अपनी सांस्कृतिक विरासत को सहेजते हुए भेड़-बकरी पालन का पेशा अपनाने का आह्वान किया क्योंकि विश्वविद्यालय चरागाहों और प्रवासी मार्गों में उनके शिविरों की जीआईएस मैपिंग कर रहा है। विश्वविद्यालय इस पेशे के आधुनिकीकरण के लिए तकनीकी हस्तक्षेप के साथ युवाओं को सहायता प्रदान कर सकता है। वे अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आईटी उपकरणों का उपयोग कर सकते हैं और विश्वविद्यालय उनकी समस्याओं का समाधान करेगा।
चरवाहों ने चंबा जिले के इतने दूर-दराज और आदिवासी क्षेत्र में अपने शिविर में उन्हें जानकारी देने के लिए कुलपति को धन्यवाद दिया। इस अवसर पर निदेशक अनुसंधान निदेशक डा. एसपी दीक्षित, सलूणी केंद्र के प्रभारी वैज्ञानिक डॉ. एस एस राणा व अन्य वैज्ञानिक उपस्थित थे।
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