धर्मपुर, रिपोर्ट
डॉक्टर पन्ना लाल वर्मा ने प्रदेश सरकार द्वारा आउटसोर्स कर्मचारियों को हिमाचल प्रदेश कौशल विकास (स्किल डेवलपमेंट) एवम रोज़गार निगम में मर्ज करने के निर्णय को आउटसोर्स कर्मियों के साथ भद्दा मजाक करार दिया है व इसे शोषणकारी व्यवस्था करार दिया है। उन्होंने कहा कि कमेटी की अध्यक्षता धर्मपूर से सम्बंधित मन्त्री हैं जो खुद ठेकेदारी प्रथा से आगे निकले हैं जिसमें मजदूरों के शोषण होता है ।
उन्होंने प्रदेश सरकार को चेताया है कि वह प्रदेश के चालीस हजार आउटसोर्स कर्मियों की आंखों में धूल झोंकना बन्द करे व इनके लिए ठोस नीति बनाकर इन्हें नियमित सरकारी कर्मचारी का दर्जा दे।
उन्होंने कहा कि निगम के बनने के बाद प्रदेश के आउटसोर्स कर्मियों में बहुतायत अकुशल मज़दूर इस निगम के दायरे से बाहर रह जाएंगे। जो कुशल कर्मी इस निगम के दायरे में आएंगे भी,वह भी सरकारी कर्मचारी की तर्ज़ पर सुविधाएं हासिल नहीं कर पाएंगे। पहले ये कर्मी निजी ठेकेदारों के ज़रिए कार्यरत थे,अब वे सीधे सरकारी ठेकेदारी प्रथा अथवा नैगमिक व्यवस्था के अधीन हो जाएंगे व जिंदगीभर ठेकेदारी,आउटसोर्स प्रथा व निगम के अधीन ही रहेंगे। वे कभी भी नियमित नहीं होंगे। उन्हें कभी भी सरकारी कर्मचारी की तर्ज़ पर सुविधाएं नहीं मिलेंगी। उन्हें सरकारी कर्मियों के बराबर वेतन भी नहीं मिलेगा। वे कभी भी सरकारी कर्मचारी बनने के हकदार नहीं होंगे।
प्रदेश सरकार का निर्णय आउटसोर्स कर्मियों को केवल झुनझुना पकड़ाना है व इसके सिवाय कुछ भी नहीं है। आउटसोर्स कर्मी सरकारी कर्मचारी बनने की लड़ाई कई सालों से लड़ रहे हैं। उनका संघर्ष सरकारी निगम के अधीन होना नहीं था बल्कि नियमितीकरण था। अगर वाकई में प्रदेश सरकार इन कर्मचारियों के प्रति गंभीर है तो वह इन्हें निगम में मर्ज करने की अधिसूचना को रद्द करके इन्हें सरकारी कर्मचारी का दर्जा देने की घोषणा करे। अगर ऐसा नहीं किया गया तो सरकार को चुनावों में कर्मचारी करारा जबाब देने को तैयार हैं ।
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