मेरे मित्र बुद्धीजीवि को अपनी नई कार के लिए कुछ सामान खरीदना था। हम चण्डीगढ के बाईस सेक्टर में एक दुकान पर चले गए। दुकान पर दो–तीन लोग ही थे। काऊंटर पर बैठे युवक ने एक लड़के को आवाज दी।
“शंटी, भाई साहिब को सामान दिखाओ।”
बुद्धीजीवि शंटी के साथ दुकान के अन्दर चला गया। मैं काऊंटर के पास ही खड़ा रहा। काऊंटर पर बैठा युवक, जिसकी उम्र तीस–पैंतीस के आसपास रही होगी, मेरे चेहरे की ओर बहुत ध्यान से देखते हुए बोला “अंकल आपके बाएं गाल पर आंख के नीचे एक मस्सा है।”
“हां है, काफी समय से है”और अनायास ही मेरे बाएं हाथ की तर्जनी उस मस्से को सहलाने लगी।
“आपके फ्रैंचकट चेहरे पर सूट नहीं करता। …मेरे पास इसकी दवाई है।”
“कोई एसिड तो नहीं?” मैनें पूछा “मुझे एसिड लगाने से डर लगता है।”
“नहीं अंकल कोई एसिड–वेसिड नहीं। एक जबरदस्त दवाई है।”फिर बिना मेरी प्रतिक्रिया जाने वह अपनी कुर्सी से उठा और काऊंटर के एक दराज में से एक कांच की भूरे रंग की शीशी निकाल कर खड़ा हो गया। यह शीशी किसी होम्योपैथिक टिंक्चर की तरह लग रही थी।
“कमाल की दवाई है अंकल। एक ही बार लगाने से मस्सा गायब हो जाता है। बस, आप हिलना मत।”
इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाता, उस युवक ने बड़ी फुर्ती से माचिस की तीली निकाली और उसे तरल पदार्थ में डुबो कर मेरे मस्से पर लगा दिया। जलन से मेरी चीख निकल गई।
“यह एसिड ही तो है”मैनें कहा।
“नहीं अंकल, यह एसिड नहीं, तेज़ाब है।”
और मैं अवाक् उस युवक का चेहरा ताकता रह गया।
लेखक का संक्षिप्त परिचय
हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के एक छोटे से कस्बे जसूर में जन्में और कुलपति के पद से सेवानिवृत्त डॉ प्रदीप शर्मा आजकल अपने घर पालमपुर में जीवन वसर कर रहे हैं। एक सम्मानित कृषि विज्ञानिक होने के साथ–साथ डॉ शर्मा एक सुलझे हुए लेखक भी हैं। प्रकृति और रोज़मर्रा की जिन्दगी से प्रेरित उनकी कविता–कहानियां विभिन्न पत्र–पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। उनके पांच कविता–संग्रह, एक गज़ल–संग्रह और एक कहानी–संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। गोलगप्पे शीर्षक से उनका एक नया कहानी–संग्रह बहुत शीघ्र प्रकाशित होने वाला है।
स्थाई पता :
निवासः निलय, आईमा, डाकखाना पालमपुर, जिला कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश – 176061
मो: 9797388333, ई–मेलः psharma3007@gmail.com
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