सरदार प्रीमत सिंह के जन्मदिवस को पुराने स्टूडेंट्स ने बनाया यादगार
ओल्ड स्टूडेंट्स ने अपने गुरूजी को स्मृतिचिन्ह व शाॅल से किया सम्मानित
ऊना ,अविनाश चौहान
पूरा भारतवर्ष जहां एक तरफ आजादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा था तो वहीं दूसरी तरफ इसी दिन जन्मे सरदार प्रीमत सिंह के 100वें जन्मदिवस को उनके पुराने स्टूडेंट्स ने उनके निवास स्थान कांटे में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया। अपने शिष्यों की सफलता और स्नेह को देख गुरूजी भी बड़े प्रसन्न हुए और लंबी आयु का आशीर्वाद दिया। ओल्ड स्टूडेंट्स ने अपने गुरूजी को स्मृतिचिन्ह व शाॅल भेंट कर सम्मानित किया। अपने प्यारे अध्यापक के 100वें जन्मदिन को मनाने के लिए कोई चंडीगढ़ से तो कोई आगरा से तो कोई दिल्ली से पहुंचा।
सरदार प्रीतम सिंह से शिक्षा हासिल करके उच्च पदों से सेवानिवृत हुए उनके स्टूडेंट्स जब सालों बाद इकठ्ठे हुए तो स्कूल के दिनों की यादें ताजा हो गई। सभी उपस्थित पुराने विद्यार्थियों ने गुरू जी द्वारा करवाई गई पढ़ाई के साथ-साथ उनकी कड़ाई को भी खुशी-खुशी याद किया। सभी पुराने विद्यार्थियों का यही कहना था कि अगर उस समय आप ना होते तो हम आज इतने बड़े पदों पर ना होते।
बता दें कि सरकार प्रीतम सिंह का जन्म उना जिला की हरोली विधानसभा क्षेत्र के गांव कांटे में 15 अगस्त 1922 को हुआ था। प्रीतम सिंह बचपन से ही पढ़ाई में होशियार थे। इन्होंने अपनी प्रांरभिंक शिक्षा पालकवाह व दसवीं की पढ़ाई एसडी स्कूल उना से प्राप्त की। इसके बाद वर्ष 1941 में पंजाब के जालंधर से ग्रेजुएशन की डिग्री हासिल की। ग्रेजुएशन करने के बाद ही इन्हें एजी कार्यालय लाहौर में क्र्लक के रूप में पहली सरकारी नौकरी मिली तब इन्हें मात्र आठ रूपए तनख्वाह मिलती थी। देश के बंटबारे के बाद इन्होंने एजी आफिस शिमला में 1952 तक सेवाएं दी।
लेकिन इनका सपना एक अध्यापक बनने का था तो इन्होंने क्लर्क की नौकरी छोड़कर बीटी की डिग्री प्राप्त की, एक साल की डिग्री पूरी होते ही इन्होंने वर्ष 1953 में बतौर अध्यापक पूबोवाल के निजी स्कूल में ज्वाईनिंग की। बतौर शिक्षक बेहतरीन सेवाएं देने के बाद ये प्रिसिंपल बने और रावमापा सलोह से बतौर प्रिंसिपल सेवानिवृत हुए।
क्या है अच्छी सेहत का राज
अपने जीवन के 100 बसंत देख चुके रिटायर्ड प्रिसिंपल सरदार प्रीतम सिंह की अच्छी सेहत का राज रोजाना 10 किलोमीटर की लंबी सैर और शुद्ध शाकाहारी भोजन है। 96 वर्ष की उम्र तक वे रोजाना सुबह की सैर को जाया करते थे। इसके अलावा गार्डिनिंग व डायरी लिखने का शौक उन्हें शुरू से ही रहा है। उम्र के इस पड़ाव में भी प्रीतम सिंह स्वस्थ हैं, थोड़ा सुनाई कम देता है। लेकिन यादाश्त अब भी तेज है और आजादी से पहले कई किस्से याद हैं। प्रीतम सिंह बताते हैं कि उन्होंने कभी भी बाहर का खाना नही खाया, हमेशा घर से बना हुआ खाना ही खाया। इसके अलावा जीवन में ना तो कभी कोई नशा किया और ना ही मांसाहार का सेवन किया।
वर्तमान पीढ़ी को प्रेरणा
गुरू व शिष्य का रिश्ता पौराणिक काल से चला आ रहा है और हमारी संस्कृति में गुरू को भगवान से भी उंचा स्थान दिया गया है। लेकिन समय के बदलाव के साथ-साथ गुरू-शिष्य का रिश्ता भी बदल गया। आज के स्टूडेंट्स ना तो अध्यापकों से डरते हैं और ना ही उनका सम्मान करते हैं। लेकिन सरकार प्रीतम सिंह के स्टूडेंट्स ने जो प्यार व समर्पण उनके जन्मदिन पर दिखाया है इससे आज के विद्यार्थी वर्ग को प्रेरणा लेनी चाहिए। सरकार प्रीतम सिंह के पास पढ़े ज्यादातर स्टूडेंट्स शिक्षा, बिजली, बैंक सहित अन्य विभागों में अपनी सेवाएं देकर सेवानिवृत हो चुके हैं।
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