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भूमिगत कीड़ों पर व्यापक काम करें वैज्ञानिक: डा.टी.आर.शर्मा, उपमहानिदेशक, आईसीएआर

दीमक पर तेजी से काम को चेक गणराज्य के वैज्ञानिकों से सहयोग लेगें: प्रो.एच.के.चौधरी, कुलपति

दो दिवसीय बैठक में जुटे देश के 70 वैज्ञानिक

पालमपुर, रिपोर्ट 
चोसकु हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर में बुधवार को भूमिगत कीटों पर अखिल भारतीय नेटवर्क परियोजना की दो दिवसीय समूह बैठक का उद्घाटन हुआ। मुख्य अतिथि भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डा. टी.आर.शर्मा ने वैज्ञानिकों से विभिन्न केंद्रों में किए गए शोध कार्यो की व्यापक समीक्षा करने और प्रमुख सफेद सूंडी के प्रबंधन के लिए किफायती,प्रभावी और व्यावहारिक एकीकृत प्रौद्योगिकी विकसित करने और देश की विभिन्न कृषि जलवायु स्थितियों और फसल प्रणालियों के तहत अन्य भूमिगत कीट प्रजातियों के लिए योजना तैयार करने को कहा। 
उन्होंने बताया कि लक्ष्य निर्धारित कर उत्कृष्ठता हासिल करने के लिए सभी 80 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजनाओं के लिए निगरानी एवम सलाहकार समितियां गठित की गई है। उपमहानिदेशक ने कहा कि खाद्यान्न में देश की आत्मनिर्भरता के बावजूद यह चिंता का एक प्रमुख कारण है कि तीस फीसदी तक फसल का नुकसान कीड़ों और बीमारियों के कारण होता है। सफेद सूंड़ी एक बड़ा खतरा है मगर पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय ने इस पर बढ़िया काम किया है। हालांकि कीट बहुत नुकसान पहुंचा रहे और सभी पौधों पर हमला कर रहें है क्योंकि वैज्ञानिकों को फसलों को होने वाले नुकसान के साथ इनकी संख्या और ढांचागत तकनीक व आनुवंशिक परिवर्तनशीलता, व्यापक शोध व फेरोमौन, जैव नियंत्रण पर कार्य करने की आवश्यकता है। इतना ही नहीं सफेद सूंड़ी और दीमक पर व्यापक शोध के साथ यह देखा जाना चाहिए कि वह सबकुछ कैसे खाते और पचाते है। शोध विद्यार्थियों को भी इस कार्यो में शामिल करते हुए उनकी मदद ली जानी चाहिए।
विदेश प्रवास पर गए कुलपति  प्रो.एच.के.चौधरी  ने अपने संदेश में बैठक में आने वाले प्रतिभागियों को भूमिगत कीड़ों सफेद  सूंडी  ,कटवर्म, दीमक, वायरवर्म के लिए प्रभावी और किसान अनुकूल नियंत्रण उपायों का सुझाव देने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि हानिकारक मिटटी के कीट आलू, राजमाश, मूंगफली, गन्ना, मक्का,सेब,नाशपत्ती, सब्जी आदि जैसी कई फसलों को गंभीर नुकसान पहुंचाते है, इसलिए भूमिगत कीड़ों के प्रबंधन के लिए अनुसंधान में तेजी लानी चाहिए। उन्होंने कहा कि कई फसलों में वार्षिक नुकसान को कम करने के लिए सफेद  सूंडी और दीमक से निपटने की आवश्यकता है। कुलपति ने बताया कि ऊंचे पहाड़ों में 80 फीसदी संक्रमण की सूचना मिली है जो हिमाचल प्रदेश में सफेद सूंड़ी के महत्व को दर्शाता है। उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय ने विगत दो वर्षो में दीमक पर अच्छा काम शुरू किया है। दीमक पर काम करेगा व विश्वविद्यालय चेक गणराज्य के जाने-माने विशेषज्ञों के साथ भी सहयोग करेगा।  
डा.जी.सी. नेगी पशु चिकित्सा एवम पशु विज्ञान महाविद्यालय के डीन व कार्यवाहक कुलपति डा. मनदीप शर्मा ने भी सफेद  सूंडी   को नियंत्रित करने की आवश्यकता पर बात करते हुए हानिकारक कीड़ों को नियंत्रित करने के लिए भागीदारी दृष्टिकोण अपनाने का सुझाव दिया।
सहायक महानिदेशक आईसीएआर के सहायक महानिदेशक डा. एस.सी.दूबे ने बतौर विशिष्ट अतिथि सुझाव दिया कि अवलोकन की पद्धति सावधानीपूर्वक होनी चाहिए और प्रबंधक एक समान और पर्यावरण के अनुकूल होना चाहिए।
नेटवर्क समन्वयक डा.ए.एस.बलोदा ने दुर्गापुर,रानीचौरी, पालमपुर,बैंगलोर और जोरहाट केंद्रों में अनुसंधान परियोजना के महत्व और उपलब्धियों व शोध कार्यो के बारे में विस्तार से जानकारी दी।
अनुसंधान निदेशक डा.एस.पी.दीक्षित ने सभी का स्वागत किया। आयोजन सचिव डा.आर.एस.चंदेल ने बताया कि विश्वविद्यालय और राजस्थान कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित इस बैठक में डा.पी.के.मेहता, आर.डी गौतम,वी.वी.राममूर्ति और जे.के. महापात्रा समेत देश के विभिन्न भागों से
करीबन 70 प्रतिभागियों ने अपनी भागीदारी दर्ज करवाई है। इस अवसर पर मुख्यातिथि ने कुछ तकनीकी प्रकाशनों का भी विमोचन किया। उद्घाटन सत्र में सभी सांविधिक अधिकारी, प्रमुख वैज्ञानिक और विद्यार्थी मौजूद रहें।

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