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चौसकु हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में दलहन पर वार्षिक समूह बैठक आरंभ

देश में दलहन क्रांति जारी रू डा. टी.आर.शर्मा, उपमहानिदेशक, आईसीएआर

राजमाश, कुलथी, उड़द जैसी दलहनों का घर है हिमाचल: प्रो.एच.के.चौधरी, कुलपति

प्रगतिशील दलहन उत्पादक सिमरो देवी, रमेश कुमार और मुनीश कुमार सम्मानित

पालमपुर, रिपोर्ट 
चौसकु हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में खरीफ दलहन फसलों पर दो दिवसीय वार्षिक समूह बैठक का उद्घाटन करते हुए भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के उप महानिदेशक डा. टी.आर.शर्मा ने कहा कि कम अवधि और जलवायु अनुकूल दलहन किस्मों को विकसित करने के लिए काम प्रगति पर है। उन्होंने कहा कि दालों में 24 प्रतिशत तक उच्च प्रोटीन सामग्री होती है। लेकिन वैज्ञानिकों को इस सामग्री में और सुधार करने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि पिछले आठ वर्षों में नीतिगत समर्थन और उचित विपणन से दलहन उत्पादन 16 मिलियन टन से बढ़कर 27 मिलियन टन हो गया है और देश में दलहन क्रांति जारी है। उन्होंने कीट प्रतिरोधी किस्मों के विकास, श्रम लागत को कम करने के लिए यांत्रिक कटाई, दलहन के तहत क्षेत्र में बीस प्रतिशत की वृद्धि, कटाई के बाद के नुकसान को कम करने, संसाधन संरक्षण, कुशल विस्तार मॉडल आदि पर चर्चा की। उन्होंने वैज्ञानिकों से किसी भी किस्म को पूर्ण उत्पाद के रूप में सभी महत्वपूर्ण लक्षण विकसित करने के लिए कहा। उन्होंने एक गतिशील मोड में प्रमुख फसलों पर अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए आईसीएआर के प्रयासों के बारे में भी बताया। 
देश में रिकार्ड खाद्यान्न उत्पादन के कारण महामारी में 80 करोड़ लोगों को मुफ्त भोजन दिया गया।  
मुख्य अतिथि के रूप में कुलपति डॉ. एच.के.चौधरी ने बताया कि राज्य कई दालों का घर है और विश्वविद्यालय कुछ पारंपरिक दालों जैसे राजमाश, कुलथी, उड़द आदि को जीआई टैग प्राप्त करने के लिए काम कर रहा है। उन्होंने जैव संसाधनों की विविधता व पहाड़ों की विविधता का वर्णन किया। उन्होंने पहाड़ी क्षेत्रों में पर्याप्त संख्या में दलहनी किस्मों की जानकारी दी और बीज ग्राम अवधारणा के माध्यम से कृषक समुदाय के बीच लोकप्रिय बनाने का सुझाव दिया। 
अच्छी कीमत प्राप्त करने के अलावा, किसान परिवारों की पोषण सुरक्षा के लिए दलहन महत्वपूर्ण हैं। प्रोफेसर चौधरी ने दालों के प्रजनक बीज उत्पादन को गुणा करने की सलाह देते हुए कम सुलभ क्षेत्रों में, विपणन नेटवर्क को मजबूत करने को कहा। उन्होंने कहा कि अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना प्रणाली कई फसलों में अत्यधिक उत्पादक में सहायक रही है।
सहायक महानिदेशक, भाकृअनुप डॉ संजीव गुप्ता ने देश में दलहन उत्पादन बढ़ाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का विवरण दिया। भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान, कानपुर के निदेशक डॉ बंसा सिंह ने मूंग, उड़द, दाल, मटरी (लैथिरस), राजमाश, मटर, अरहर और सूखी फलियों पर विस्तृत शोध कार्य को सामने रखा। परियोजना समन्वयक, अरहर डॉ. आई.पी.सिंह, अखिल भारतीय समन्वयक अनुसंधान परियोजना के परियोजना समन्वयक, (शुष्क फलिया)ं डॉ फरिंद्र सिंह, अनुसंधान निदेशक डॉ. एस.पी.दीक्षित, वरिष्ठ वैज्ञानी डा. जे.डी शर्मा व आयोजन सचिव डॉ सुमन कुमार ने भी दलहन पर अनुसंधान और विकास कार्यों पर अपनी बात को रखा। कार्यक्रम में प्रगतिशील दलहन उत्पादक सिमरो देवी, रमेश कुमार और मुनीश कुमार को उप महानिदेशक द्वारा सम्मानित किया गया।
 उन्होंने दलहन पर कुछ प्रकाशनों का भी विमोचन किया। उद्घाटन समारोह में लगभग 150 प्रतिनिधियों के अलावा, विश्वविद्यालय के संविधिक अधिकारी, विभिन्न विभागों के प्रमुख और राज्य के कुछ प्रगतिशील दलहन उत्पादक भी शामिल हुए।

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