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सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर में केसर व हींग की कृषि तकनीकों पर दक्षता विन्‍यास कार्यक्रम संपन्‍न

पालमपुर, प्रवीण शर्मा
सीएसआईआर-आईएचबीटी पालमपुर में 20-24 सितंबर, 2021 को केसर व हींग की उत्पादन तकनीक पर कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश के कृषि अधिकारियों हेतु पांच दिवसीय दक्षता विन्‍यास कार्यक्रम संपन्‍न हुआ। इस कार्यक्रम में हिमाचल के चंबा, कांगड़ा, किन्नौर, कुल्लू, लाहौल स्पीति और मंडी जिला के बारह कृषि अधिकारी (विषय वस्तु विशेषज्ञ, कृषि विकास अधिकारी और कृषि विस्तार अधिकारी) ने प्रतिभागिता की। संस्थान के निदेशक डॉ संजय कुमार ने अपने स्‍वागत संबोधन में कहा कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने राज्य में “कृषि से संपन्नता योजना” के अंतर्गत केसर एवं हींग पर परियोजनाओं को वित्त पोषित किया है। 
सीएसआईआर-हिमालय जैव संपदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पालमपुर हिमाचल प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के सहयोग से प्रदेश में इस परियोजना को लागू कर रहा है। संयुक्त परियोजना के सफल क्रियान्वयन हेतु कृषि अधिकारियों एवं किसानों की क्षमता निर्माण की आवश्यकता है। इस गतिविधि को जारी रखते हुए हिमाचल प्रदेश के गैर-पारंपरिक क्षेत्रों में केसर एवं हींग की सफल खेती हेतु समय-समय पर किसानों के प्रक्षेत्रों एवं सीएसआईआर-आईएचबीटी में प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है। उन्होने हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का प्रमुख उत्पादक राज्‍य बनाने के अपने संकल्प को भी  दोहराया। उन्होने कृषि अधिकारियों को केसर एवं हींग की खेती के प्रत्‍येक क्षेत्र में संस्‍थान  की टीम  के सहयोग का आश्वासन भी दिया।
डॉ. राकेश कुमार, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं कार्यक्रम समन्वयक (दक्षता विन्‍यास कार्यक्रम) ने देश की अर्थव्यवस्था के लिए मसाला फसलों, केसर और हींग के उत्पादन के महत्व के बारे में चर्चा की। उन्होने बताया कि इस कार्यक्रम में संस्थान के संकाय सदस्यों द्वारा कृषि तकनीक, बुवाई, स्थल चयन, मिट्टी के नमूने, वृक्षारोपण, वृक्षारोपण तकनीक, पोषक तत्व प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन, कटाई, भंडारण, पैकेजिंग और केसर व हींग के उत्तक संवर्धन तकनीकों  पर जानकारी प्रदान की  गई।
 प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि भारत में केसर की वार्षिक मांग लगभग 100 टन है जबकि जम्मू और कश्मीर में केवल 6-7 टन का उत्पादन होता है जो देश की मांग आपूर्ति के लिए पर्याप्त नहीं है, अतः ईरान व अफगानिस्तान जैसे देशों से इसका आयात किया जाता है। इन फसलों के आयात को कम करने के लिए, इसकी खेती के लिए वैकल्पिक स्थलों का चयन और कृषि अधिकारियों व किसानों को प्रशिक्षित करने पर बल दिया गया है। वर्तमान में, केसर केवल जम्मू-कश्मीर के पंपोर और किश्तवाड़ क्षेत्र में उगाया जा रहा है। डॉ. अशोक कुमार, परियोजना अन्वेषक (हींग परियोजना), ने बताया कि इसी प्रकार अफगानिस्तान, ईरान और उज्बेकिस्तान से 1540 टन हींग आयात करने के लिए देश प्रति वर्ष लगभग 942 करोड़ रुपये खर्च करता है। भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आवशयक है कि इन मसाला फसलों के उत्पादन के लिए उपयुक्त क्षेत्रों में इनकी खेती की जाए। नवंबर, 2020 में राज्य सरकार द्वारा “कृषि से संपन्नता योजना” के अन्‍तर्गत केसर और हींग की खेती की शुरुआत की गई। उद्घाटन कार्यक्रम में डॉ. दिग विजय, संयुक्त निदेशक, कृषि विभाग, हिमाचल प्रदेश ने भी वर्चुअल रूप से भाग लिया। उन्होंने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए विश्वास व्यत किया कि प्रतिभागी इन फसलों की सफल खेती के लिए आवश्यक तकनीकों से संबंधित ज्ञान प्राप्त करेंगे। उन्होंने अधिकारियों और किसानों के लाभ के लिए इस तरह के कार्यक्रम आयोजित करने के लिए सीएसआईआर-आईएचबीटी का आभार  प्रकट किया।
पाँच दिवसीय कार्यक्र्म में कृषि अधिकारियों को केसर व हींग की उन्नत कृषि तकनीक, गुणवत्ता विश्लेषण, जैविक तथा अजैविक स्ट्रैस प्रबंधन एवं फसलौपरांत परक्रामण एवं भंडारण के बारे में  व्यावहारिक प्रदर्शन के माध्यम से जानकारी दी गई। अधिकारियों को केसर एवं हींग की ऊतक संवर्धन तकनीकों से भी रूबरू कराया गया एवं उसका व्यावहारिक अनुभव भी दिया गया। 
कार्यक्रम का समापन 24 सितंबर को निदेशक हिमालय जैवसंपदा प्रौद्योगिकी संस्थान पालमपुर, डॉ संजय कुमार द्वारा प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र देकर किया गया। निदेशक महोदय ने समापन सत्र में कृषि अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा की हिमाचल प्रदेश को केसर एवं हींग का अग्रणी निर्माता बनाना ही इस परियोजना का उद्देश्य है। केसर एवं हींग का अधिक से अधिक उत्पादन इस क्षेत्र में भारत को आत्मनिर्भर बनाने हेतु अति आवश्यक है। उन्होने आगे कहा की की इस परियोजना को सफल बनाने में कृषि अधिकारियों का अहम भूमिका रहेगी। 

निदेशक महोदय ने प्रतिभागियों को पूरे सहयोग का आश्वासन दिया तथा  आहवान किया कि केसर और हींग की अच्छी कृषि पद्धतियों का विस्‍तार अपने क्षेत्रों में करें ताकि किसानों को  आत्‍मनिर्भर  बनाया जा सके। ड़ा सनतसुजात सिंह, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक एवं विभागाध्यक्ष कृषि प्रौद्योगिकी प्रभाग द्वारा धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया एवं इस परियोजना की सफलता की कामना की।  

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